गेहूं की खेती में किसानों को भूरा रतुआ रोग, काला रतुआ रोग और पीला रतुआ रोगी की समस्या आती है तो चलिए जानते हैं किन राज्यों के किसानों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए और इन रतुआ रोगों के लक्षण और उपाय क्या है।
गेहूं की फसल में लगने वाले रोग
गेहूं की खेती में किसानों को मुनाफा तो होता है। लेकिन कई तरह की चुनौतियां भी इसमें देखने को मिलती है। जैसे कि रतुआ रोगों की समस्या, गेहूं में तीन तरह के रतुआ रोग लग सकते हैं। जैसे कि भूरा रतुआ रोग, काला रतुआ रोग और पीला रतुआ रोग। यह रोग कई राज्यों के किसानों को परेशान करते हैं और पैदावार घटा देते हैं। कुछ रोग तो ऐसे हैं जिनसे गेहूं की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। जिससे गेहूं के दाने छोटे हो जाते हैं और किसानों को उनकी कम कीमत मिलती है।
लेकिन अगर सही समय पर किसान इनका प्रबंध कर देते हैं तो इनसे छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। गेहूं की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं, पैदावार को घटने से बचा सकते हैं।
रतुआ रोग के लक्षण और उपाय
गेंहू की फसल में कौन से रोग लग सकते है, उनके नाम, लक्षण, क्षेत्र और उपाय जानें।
भूरा रतुआ रोग– इस रोग के लक्षण की बात करें तो यह पत्तियों पर दिखाई देते है। यह रोग फसल के साथ बढ़ते होते है। पत्तियों पर अगर नारंगी-भूरा रंग का धब्बा दिखाई दे तो समझ जाइये यही रोग है। यह धब्बे धीरे-धीरे बढ़ते जाते है। गेंहू की खेती करने वाले बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल और पंजाब के किसानों को इस रोग से अधिक सावधान रहना चाहिए। इन क्षेत्रों में यह अधिक देखने को मिलता है। अगर यह दिख गया तो चलिए जानते है इसका उपाय क्या है।
- उपाय– भूरा रतुआ रोग से बचने और इसे बढ़ने से रोकने के लिए सबसे आसान तरीका है कि किसान एक ही किस्म का गेंहू सभी खेतों में ना लगाएं। नहीं तो यह तेजी से फैलेगा। लेकिन अगर रासायनिक उपाय करना चाहते है तो इसके लिए प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का इस्तेमाल करें। यह इस रोग से छुटकारा दिलाएगा। इसका इस्तेमाल 0.1% का घोल बनाकर फसल में छिड़कना है। अगर यह रोग खेतों में फ़ैल चुका है तो 10-15 दिन में दोबारा छिड़के। इससे यह रोग खत्म होगा।
काला रतुआ रोग– यह रोग पत्तियों के साथ-साथ तने पर भी दिखाई देता है। यह तने को कमजोर कर देता है। जिससे पैदावार घटती है। इससे फसल के तने पर भूरे और काले रंग के धब्बे दिखाई देते है। इस रोग के कारण गेंहू के दानों की गुणवत्ता ख़राब होती है। जिससे किसानों कम कीमत मिलती है। यह रोग दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों को अधिक नुकसान पहुँचता है। उन्हें इसके लिए सतर्क रहना चाहिए।
- उपाय– काला रतुआ रोग खतरनाक रोग है। इसका उपाय जल्द से जल्द करना चाहिए। इसके लिए रासायनिक उपाय है प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का छिड़काव करें। जिसमें 0.1% घोल को फसल में छिड़कना है। अगर फसल में यह रोग भयानक रूप से फ़ैल रहा है तो 15 दिन बाद फिर से छिड़के।
पीला रतुआ रोग– इस रोग की पहचान करना बहुत आसान है। जब यह रोग गेंहू की फसल में फैलता है तो पत्तियों को छूने पर हाथ में पीला रंग लग जाता है। यह रोग पत्तियों को देखकर भी पता लगा सकते है, इससे पत्तियों में पीले रंग की धारी बन जाती है। इस रोग की चिंता उन किसानों को अधिक करनी चाहिए जहाँ ज्यादा ठंड पड़ती है जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा आदि। यहाँ अधिक इसका प्रकोप देखने को मिलता है।
- उपाय- अगर इस रोग का सामना नहीं करना चाहते है तो बता दे कि कई ऐसी किस्में आती है जो पीला रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है। जिनसे उनमे यह रोग नहीं लगता है। लेकिन अगर यह रोग फसल में लग जाए तो दवाई डाल सकते है। जिसमें प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का चयन करें। इसे 0.1% घोल बनाकर छिड़के। इससे यह रोग दूर होगा। यह घातक रोगो का सफाया करने में असरदार है।
नोट: यह लेख सिर्फ जानकारी के लिए है। किसी भी उपाय को करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से सलाह जरूर लें, धन्यवाद।