नींबू के पौधे में ज्यादा फल लेने के लिए कौन सी खाद कैसे डालें इसके बारे में यहां पर जानकारी दी गई है-
नींबू के पौधे मैं आने वाली समस्याएं
घर पर गमले में या जमीन पर भी नींबू का पौधा लगाया जा सकता है। बड़े आकार के गमले या कंटेनर में नींबू का पौधा लगा सकते हैं और ढेर सारे नींबू प्राप्त कर सकते हैं। कुछ ऐसी वैरायटी आती है जिन्हें गमले में लगाकर भी ज्यादा फल प्राप्त किये जा सकते हैं। लेकिन ज्यादा फल लेने के लिए नींबू की समय-समय पर देखभाल करनी पड़ती है। पोषक तत्व की कमी दूर करनी पड़ती है। जैसे की नींबू में पीलेपन की भी समस्या आ जाती है। फल कम आने की भी समस्या देखने को मिलती है तो चलिए आपको बताते हैं कि कौन-सी चीज करेंगे तो नींबू में पीलापन की समस्या नहीं आएगी और फल ज्यादा मात्रा में आएंगे।
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नींबू के लिए खाद
नीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार जाने नींबू में खाद-पानी कैसे दें-
- नींबू की पत्तियों का पीला होने का एक कारण हो सकता है पानी ज्यादा होना और फंगस लगना। इसके लिए पानी कम दे और मिट्टी की गुड़ाई करें। ऊपर की परत मिट्टी की हटा दे और जब जड़ दिखने लगे तो हमें तीन-चार दिन उसे धूप लगने देना है।
- इसके बाद मिट्टी में खाद मिलानी है। जिसमें ढाई सौ ग्राम सबसे पहले नीम की खली डालेंगे। नीम की खली नींबू के पौधे में 6 महीने में एक बार दे सकते हैं।
- इसके बाद कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए स्टोन पाउडर डाल सकते हैं। स्टोन पाउडर नींबू के पौधे में साल में एक बार जरूर दें। आधा किलो स्टोन पाउडर डालें।
- इसके बाद आयरन पाउडर डालेंगे। जिससे आयरन की कमी दूर होगी। अगर आयरन पाउडर है तो एक मुट्ठी डाल दीजिए। अगर नहीं है तो तीन चार लोहे की कील लेनी है, उन्हें पानी में डुबोकर रखना है, फिर इस पानी को मिट्टी में डालें।
- इसके बाद लीफ कंपोस्ट यानी की पत्तियों से जो खाद घर पर तैयार की जाती है वह देना है। एक पौधे में आप एक या डेढ़ किलो लीफ कंपोस्ट दीजिए।
- इतना सब कुछ डालने के बाद हमें अंतिम में तीन से चार मुट्ठी जैविक कार्बन देना है। जैविक कार्बन डालने से पौधा अच्छे से पोषक तत्व ग्रहण करेगा।
- इसके बाद हल्की मिट्टी से ढक दीजिये और दो-तीन दिन बाद पानी दीजिए।
- इसके बाद फूल फल ज्यादा आएंगे जब फूल आते हैं उसे समय पानी हल्का कम देना है। ताकि फल ज्यादा बने।
नोट: इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभवों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध इंटरनेट स्रोतों पर आधारित है। किसी भी जानकारी का उपयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से परामर्श अवश्य करें।
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