हरे सोने की खेती से किसान बनेंगे करोड़ों के मालिक, सरकार भी दे रही सब्सिडी, यहाँ जानिये पूरा प्लान। जिससे किसानों को इस महंगी खेती और इससे होने फायदों के बारें में पता रहे।
हरे सोने की खेती
हमारे देश में ही कुछ ऐसे पेड़ है, जिनकी खेती करके मालामाल हो सकते हैं। लेकिन आज हम जिस खेती की बात कर रहे हैं उसमें करोड़ों का मुनाफा हो सकता है। इसीलिए सरकार भी लगातार इसके लिए प्रयास कर रही है, और उन्हें प्रोत्साहन दे रही है। सिर्फ सब्सिडी नहीं इसके अलावा अन्य मदद भी कर रही है। ताकि किसान इस खेती को करें और अपनी आमदनी चौगुनी बढ़ाएं। इस तरह आज हम एक फार्मिंग बिजनेस आइडिया के बारे में जानने वाले हैं।
दरअसल, हम बांज पेड़ की बात कर रहे हैं। बांज वह पेड़ है जो उत्तराखंड के ऊंचे-ऊंचे पर्वत में पाया जाता है। यहां के स्थानीय भाषा में ही इसे बांज कहा जाता है। जिसे वैज्ञानिक नाम Quercus है। चलिए जानते हैं आखिर इस पेड़ में ऐसी कौन सी खासियत है जिससे इसे हरा सोना कहा जा रहा है।
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बांज पेड़ से बना रेशम
हम जिस बांज नामक पेड़ की बात कर रहे हैं, उस पेड़ में ऐसी खासियत पाई जाती है जो की टसर सिल्क बनाने में मदद करती है। जी हां आपने सही सुना रेशम बनाने के लिए इस पेड़ में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व मदद करते हैं। इसी कारण उत्तराखंड सरकार ने देहरादून में एक सिल्क उत्पादन केंद्र बनाया हुआ है। क्योंकि यहां पर यह पेड़ अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं, और इसमें रेशम के कीड़े पलते हैं। जिससे टसर सिल्क बनता है।
टसर सिल्क रेशम का एक प्रकार है। यह रेशम वृक्षों पर जीवित रहने वाले रेशम कीड़े के लार्वा से एक खोल बनता है, और उससे जो कोकून बनता है, उससे मिलता है रेशम। यह रेशम सुनहरे रंग के कारण प्रसिद्ध है ,चलिए जानते हैं इन पेड़ों की खेती से किसानों को कैसे फायदा है।
ओक टसर रेशम कीट पालन
ओक टसर रेशम कीट पालन के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है कि वह मणिपुरी बांज पेड़ों को लगाए। जिससे यह रेशम ज्यादा मिले। इसीलिए उत्तराखंड सरकार मनरेगा योजना के द्वारा भी मणिपुरी बांज की संख्या बढ़ाने के लिए इसकी बोवाई करने के प्रयास में है। जिसके लिए सरकार ओक टसर रेशम कीट पालन के द्वारा जो लोग इसको लगाना चाहते है, उनको चुनकर संस्थान की तरफ से लार्वा कीट दे रही है।
ताकि वह इन पेड़ों पर इस रेशम का उत्पादन कर सके। क्योंकि यह कीट बांज के पेड़ों के पत्ते को खाकर लार्वा कीट बढ़ाते हैं, और फिर यह अंत में कोकून बनता है। इसके बाद संस्था इस कोकून को ही प्रति पीस के अनुसार खरीद लेती है। फिर किसान जो कीट का पालन करते हैं, उनके मेहनत के अनुसार कीमत मिलती है। बता दे कि सरकार सेटेलाइट के माध्यम से नैनीताल, अल्मोड़ा, पौड़ी, गढ़वाल और बागेश्वर के साथ-साथ कई जिलों में बांज के पेड़ लगाने और इससे होने वाले फायदे के बारे में बता रही है।
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