अंगूर की खेती में किसानों को फायदा है। इसलिए आज इस लेख में हम जानेंगे कि अंगूर की खेती किस तरीके से करें, किन बातों का ध्यान रखें, कब और कहां करें, जिससे उन्हें अधिक उत्पादन मिले-
अंगूर की खेती (Grapes Farming)
अंगूर की खेती में किसानों को अन्य पारंपरिक फसलों के तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है। इस खेती में निवेश करना किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है। यह किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है। अंगूर का फल सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसकी अच्छी कीमत भी किसानों को मिलती है। लेकिन अंगूर की खेती में कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे की जलवायु, मिट्टी, समय और खेती का तरीका आदि।
अंगूर की खेती कब होती है
अंगूर की खेती के समय की बात करें तो दिसंबर से जनवरी महीने के बीच में अंगूर की खेती कर सकते हैं। जिसमें अंगूर की जड़ की रोपाई दिसंबर से जनवरी के बीच करते हैं। सर्दियों में अंगूर की खेती के लिए आदर्श तापमान की बात करें तो सर्दियों में 3 °C (37 °F) के आसपास बेहतर होता है और गर्मियों में आदर्श तापमान औसतन 22 °C (72 °F) के आसपास बढ़िया होता है।
अंगूर की खेती किस मिट्टी में होती है
अंगूर की खेती के लिए मिट्टी के बात करें तो बढ़िया जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी का चयन करें। इसमें अच्छी उपज किसानों को मिलती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच बेहतर माना जाता है। अंगूर की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में की जाती है। अगर किसान मिट्टी का ध्यान रखेंगे तो उन्हें नुकसान नहीं होगा।
अंगूर की सिंचाई
अंगूर की फसल की सिंचाई की बात कर तो ड्रिप इरीगेशन तकनीक इसके लिए बेहतर होती है। कम पानी में बढ़िया अंगूर की खेती कर सकते हैं। लागत भी कम हो जाती है। समय पर सिंचाई करते हैं तो अच्छी फसल भी होती है। ड्रिप से सिंचाई करने के लिए सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और इस पर सब्सिडी दे रही है।
अंगूर की खेती क्या कहलाती है
अंगूर की खेती को विटीकल्चर (Viticulture) कहा जाता है। जिसमें अंगूरों की बुवाई, पोषण, देखरेख, फल उत्पादन आदि का अध्ययन शामिल होता है। विटीकल्चर बागवानी विज्ञान की एक शाखा मानी जाती है। इसके अलावा अंगूर की खेती कटाई आदि को वाइनग्रोइंग भी कहते हैं। लेकिन जब पूछा जाता है कि अंगूर की खेती को क्या कहा जाता है तो इसका उत्तर होता है विटीकल्चर।
अंगूर की खेती कहां होती है
अंगूर की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में होती है। जिसमें महाराष्ट्र के नासिक जिला में सबसे ज्यादा अंगूर का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक में भी अंगूर की खेती होती है। तमिलनाडु, पंजाब और पश्चिम बंगाल और थोड़ी बहुत मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के इलाकों में भी अंगूर की खेती होती है। इसके अलावा भी अन्य देश की बात करें तो अंगूर की खेती फ्रांस, USA, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, पुर्तगाल, चीन, ईरान, अर्जेंटीना, इटली जैसे कई देशों में होती है।
अंगूर की खेती कैसे करें
अंगूर की खेती कलम लगाकर भी कर सकते है। जिसमे काट छांट से निकली टहनियों से कलम बनाते है। कलम 4 – 6 गांठ वाली लेना है। जिनकी 23 – 45 से.मी. लम्बाई हो। जिसमें कलम का नीचे का कट गांठ के ठीक नीचे करें और ऊपर का कट तिरछा रखे। इससे ऊपर-नीचे की कलम का भी पता रहेगा। यहाँ पर रोपाई एक साल पुरानी जडय़ुक्त कलम की जनवरी में करें। यानी कि पहले नर्सरी तैयार रखे। फिर ऊंची क्यारियों में कलम लगाएं।
किसान बेल लगाते है तो उसके लिए जिसमें गड्ढे 90 x 90 से.मी. के खोदे उनमें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशियम सल्फेट आदि चीजे मिलाकर भरें। फिर इसी जनवरी में 1 साल पुरानी जड़वाली कलम लगाएं और पानी दें। इससे अछि फसल होगी।
अंगूर की बेल साधने के लिए कई पद्धति है। जिसमें मुख्य रूप से पंडाल, बाबर, टेलीफोन, हैड, निफिन आदि प्रचलित है। जिसमें पंडाल पद्धति से अगर किसान बेल साधने जाते है तो उसके लिए उन्हें 2.1 – 2.5 मीटर ऊंचाई पर कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाना होता है। इससे बढ़िया उत्पादन मिलता है। अधिक कमाई होती है। इसमें जाल में एक ही ताना बनाया जाता है। फिर तारों के जाल पर पहुंचने पर तने को काटते है। जिससे पाश्र्व शाखाएं उगती है। फिर तीन सखायें रहती है।
यहाँ पर उगी हुई प्राथमिक शाखाओं पर सभी दिशाओं में लगभग 60 सेमी, दूसरी पाश्र्व शाखाओं के रूप में विकसित करते है। वहीं द्वितीयक शाखाओं से 8 से 10 तृतीयक शाखाएं विकसित हो जाती है। जिनपर फल आते है। यह सब किसानों को सीखने के बाद ही अंगूर की खेती करनी चाहिए।
अंगूर की उन्नत किस्म
अंगूर की उन्नत किस्मे कई है, जिनकी खेती करके किसान अच्छा उत्पादन ले सकते है। नीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार अंगूर की कुछ उन्नत किस्मो के बारें में जानें-
परलेट- इस किस्म के फल गोल होते है, गुच्छों में आते है, गठीले होते है और हरे रंग के होते है। लेकिन इसमें एक दिक्क्त आ जाती है कई आकार कभी कभी कुछ गुच्छो में छोटे होते है फल अविकसित हो जाते है। यह किस्म उत्तर भारत में जल्दी तैयार होती यह।
पूसा सीडलेस- इस किस्म के अंगूर अंडाकार और छोटे होते है। इसके लम्बे, बेलनाकार सुगंधयुक्त गुच्छे गठे हुए रहते हैं। रंग पीले सुनहरे हो जाते हैं। अगर किशमिश बेचने के लिए अंगूर लगा रहे है तो यह वेरायटी अच्छी रहेगी।
ब्यूटी सीडलेस- इस किस्म के फल का आकार मध्यम, गोल रहता है। इसकी मुख्य खासियत यह बीज रहित है। रंग में काले होते हैं। इसमें 17-18 घुलनशील ठोस तत्व होते है।
पूसा नवरंग- अंगूर की यह संकर किस्म है। इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। जल्दी पक जाती है। इसके गुच्छे मध्यम आकार के रहे है फल बीजरहित, गोलाकार एवं काले रंग का होता है। इसके गुच्छे लाल भी हो जाते है। इस किस्म का चुनाव किसान रस, मदिरा बनाने के लिए कर सकते है।
इनके आलावा अनब-ए-शाही, बंगलौर ब्लू, गुलाबी, भोकरी, काली शाहबी, थॉम्पसन सीडलेस, शरद सीडलेस, और परलेटी आदि है।
अंगूर की मांग
अंगूर की मांग कई क्षेत्रो में है। अंगूर खाने के आलावा इससे कई अन्य प्रोडक्ट बनाये जाते है। जी हाँ आपको पता ही होगा कि अंगूर की खेती शराब बनाने के लिए या कच्चे रूप में खाने के लिए होती है। जिसमें कच्चे रूप में खाने वाले अंगूरों को टेबल अंगूर कहा जाता है। अंगूर का इस्तेमाल वाइन, जैम, अंगूर का रस, जेली, सिरका आदि बनाने में किया जाता है। वहीं सूखे अंगूरों को किशमिश के रूप में बेचा जाता है। अंगूर के बीज का तेल भी बनता है।
अंगूर खाने के फायदे
अंगूर सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इससे अस्थमा, हृदय, रोग, कब्ज, हड्डियां, स्वस्थ रहती हैं। शुगर भी नियंत्रित रहता है। ब्लड प्रेसर भी नियंत्रित रहता है। आँखे तेज होती है। इसका स्वाद भी लोगो को पसंद होता है। जिससे अंगूर की डिमांड रहती है।
अंगूर की खेती से जुड़े FAQ’s
अंगूर की खेती को क्या कहा जाता है?
अंगूर की खेती को विटीकल्चर (Viticulture) कहा जाता है। यह शब्द लैटिन भाषा के “Vitis” (जिसका अर्थ है अंगूर की बेल) और “Culture” (जिसका अर्थ है खेती या उत्पादन) से मिलकर बना है।
अंगूर का पेड़ कितने दिन में फल देता है?
अंगूर से फल लेने में 1 से 2 साल का समय लगता है | फूल आने के बाद 120 से 140 दिन बाद फल पकने शुरू हो जाते हैं |