MP के किसान ने एक ऐसी सब्जी की जानकारी दी है जिससे किसान भी कम खर्चे में, कम समय में ज़्यादा कमाई कर सकते हैं।
कम समय-कम खर्चे में ज़्यादा मुनाफा देने वाली सब्जी फसल
कई किसानों को अब सब्जियों की खेती में ज़्यादा मुनाफा नज़र आ रहा है क्योंकि ये फसलें कम समय और कम खर्चे में तैयार हो जाती हैं। लेकिन सभी सब्जियाँ ऐसी नहीं होतीं। यहां पर आपको एक ऐसी सब्जी की जानकारी देने जा रहे हैं जो सेहत के लिए फायदेमंद है, बाजार में आसानी से बिक जाती है और आने वाले समय में इसकी अच्छी-खासी डिमांड होने वाली है। इसमें खर्च भी कम लगता है, 30 दिन में फसल तैयार हो जाती है और किसान ने खुद बताया है कि उन्हें इससे अच्छा मुनाफा हो रहा है।
यह एक औषधीय फसल है। अगर आप व्यवसायिक खेती करना चाहते हैं तो यह एक अच्छा विकल्प है शुरुआत के लिए, क्योंकि खर्चा भी कम लगता है और इसकी खेती के लिए ज़्यादा मेहनत करने की भी किसानों को ज़रूरत नहीं है।
दरअसल, यहां पर आमडी की भाजी की बात की जा रही है। मध्य प्रदेश के किसान अक्ल सिंह आमडी की भाजी की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यह किसान खंडवा जिले के रहने वाले हैं। तो चलिए, आपको बताते हैं आयरन, कैल्शियम, विटामिन A, C और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर इस लाल भाजी की खेती कैसे करें किसान।

1 एकड़ में कितना लगेगा बीज और कितना मिलेगा उत्पादन?
इस सब्जी की खेती किसान थोड़ी ज़मीन में भी कर सकते हैं। एक साथ दो-तीन और प्रकार की सब्जियों को एक एकड़ में लगाया जा सकता है। लेकिन अगर अनुमान की बात करें कि बीज कितना लगेगा, तो 1 एकड़ में 1.5 से 2 किलो तक बीज लग जाता है।
वहीं, उत्पादन की बात करें तो एक एकड़ से 40 से 50 क्विंटल तक किसान इससे उत्पादन ले सकते हैं। इसका नाम लाल भाजी है लेकिन इसके पत्ते हरे होते हैं। इसे बहुत ज़्यादा रासायनिक खाद की ज़रूरत नहीं पड़ती है। आप गोबर की पुरानी जैविक खाद से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। इसे लगाने के सही समय की बात करें तो फरवरी से जुलाई के बीच में इसे लगाकर अच्छा मुनाफा किसान ले सकते हैं।
मंडी भाव और 1 एकड़ में कमाई
इसका भाव बाजार में अच्छा मिलता है। सेहत के लिए फायदेमंद है, इसलिए डिमांड में भी रहती है। किसान ने बताया कि यह लाल भाजी, जिसे आमडी की भाजी भी कहते हैं, बाजार में ₹15 से ₹25 किलो में आसानी से बिक जाती है। जिससे वह एक एकड़ से ₹70 से ₹80 हजार रुपए की कमाई कर पाते हैं।
वहीं खर्चा ₹6000 तक आता है। लेकिन अगर किसान के पास ज़मीन, सिंचाई, खाद आदि की व्यवस्था हो, तो खर्चा घट सकता है। लेकिन जिन किसानों को हर चीज़ खरीदनी पड़ती है और वह खुद खेतों में काम भी नहीं करते, उन्हें मज़दूर अधिक रखने पड़ते हैं, तो उन्हें खर्च भी ज़्यादा करना पड़ता है।

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