पर्पल कलर की इस सब्जी की खेती में इस्तेमाल करें इन किस्मों का, मिलेगा जबरदस्त उत्पादन और तगड़ा पैसा

पर्पल कलर की इस सब्जी की खेती में इस्तेमाल करें इन किस्मों का मिलेगा जबरदस्त उत्पादन और तगड़ा पैसा। नीले आलू की खेती, जिसे “ब्लू पोटैटो” या “पर्पल पोटैटो” की खेती भी कहा जाता है, हाल के वर्षों में भारत में भी लोकप्रिय हो रही है। यह आलू सामान्य आलू से अलग होता है क्योंकि इसका छिलका और गूदा दोनों नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसका रंग इसमें पाए जाने वाले एंथोसायनिन के कारण होता है, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। आइए इसकी खेती के बारे में विस्तार से जानते है।

नीले आलू की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

समशीतोष्ण और ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। उच्च तापमान में उत्पादन घट सकता है। बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो। पीएच मान 5.5 से 6.5 तक बेहतर है। जैविक पदार्थों से भरपूर मिट्टी उपज में वृद्धि करती है।

नीले आलू की किस्मे

प्रजाति और किस्में – ब्लू पोटैटो। भारत में कुछ स्थानों पर स्थानीय किस्में भी विकसित की जा रही हैं।

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नीले आलू की खेती कैसे करें

भारत में पहाड़ी क्षेत्रों में सितंबर से अक्टूबर और मैदानी इलाकों में नवंबर से जनवरी के बीच बुवाई उपयुक्त मानी जाती है। बीज आलू को 5-6 सेंटीमीटर गहराई पर बोया जाता है और कतार से कतार की दूरी 45-60 सेंटीमीटर तथा पौधों के बीच की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखें। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। इसके बाद मिट्टी में नमी के अनुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। जल भराव से बचें, वरना कंद सड़ सकते हैं।

बुवाई से पहले खेत में 20-25 टन गोबर की खाद डालें। इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) का संतुलित प्रयोग करें। फसल की बढ़वार के समय नीम की खली और वर्मी कम्पोस्ट का भी प्रयोग लाभकारी है। बुवाई के 90-120 दिनों बाद आलू खुदाई के लिए तैयार हो जाता है। एक एकड़ से औसतन 80-120 क्विंटल नीले आलू की उपज ली जा सकती है।

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नीले आलू की खेती में रोग और कीट नियंत्रण

नीले आलू में सामान्य आलू की तरह ही झुलसा रोग व इल्ली का खतरा रहता है। जैविक कीटनाशकों या नीम के अर्क का छिड़काव करें। फसल चक्र अपनाकर रोगों से बचाव किया जा सकता है।

नीले आलू से कमाई

नीला आलू खासतौर पर जैविक और हेल्दी फूड मार्केट में अधिक दाम पर बिकता है। सामान्य आलू की तुलना में इसका बाजार मूल्य 1.5 से 2 गुना अधिक होता है। विदेशों में निर्यात की भी संभावनाएं हैं।

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