मटर की फसल को रोगो और कीटों से कोसों दूर रखेगा यह फॉर्मूला। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते है। ठंड के समय में मटर की मार्केट में खूब ज्यादा डिमांड रहती है। इतना ही नहीं इसकी आवक भी खूब ज्यादा रहती है। मुनाफा कमाने के लिए किसान मटर की खेती करते हैं। लेकिन मटर की फसल पर कई तरह के रोगों और कीटों का खतरा हमेशा बना रहता है। आज हम आपको इन लोगों और कीटों से मटर की फसल को बचाने के उपाय बताते है। आइए जाने इसके रोकथाम के उपाय।
चूर्णिल आसिता से बचाव
चूर्णिल आसिता एक तरह का कवकजनित रोग है जो मटर की फसलों में लगता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए आपको सल्फरयुक्त कवकनाशी सल्फेक्स को 2.5 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर के 15 दिनों के गैप में लगभग दो से तीन बार फसल पर इसका स्प्रे करना होगा।
या फिर घुलनशील गंधक का मटर की फसल पर स्प्रे करें। इसके साथ ही चूर्णिल आसिता रोग को नियंत्रण में लाने के लिए कार्बेन्डाजिम या डिनोकैप, केराथेन 48 ईसी का उपयोग भी किया जा सकता है। इस प्रकार इस रोग का खात्मा मटर की फसल से किया जा सकता है।
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रतुआ रोग से बचाव
मटर की फसल को रतुआ रोग से बचाने के लिए आपको इस फसल पर मेन्कोजेब दवा की 2.0 कि. ग्रा. या डाईथेन एम-45 को 2 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर या फिर हेक्साकोनाजोटा 1 लीटर या प्रोपिकोना 1 लीटर के हिसाब से 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल पर स्प्रे कर दे। इस प्रकार इस रतुआ रोग का खात्मा किया जा सकता है।
तनाछेदक और फलीछेदक कीटों से बचाव
मटर की फसल में कई प्रकार के कट लग जाते हैं जिससे बचाव करने के लिए आपको इन उपायों को आजमाना चाहिए। मटर की फसल को इन कीटों से बचने के लिए आपको इंडोक्लासाकार्ब का स्प्रे फसल पर कीटों से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करता है।
मटर की फसल में अगर तना छेदक कीट है तो उसको रोकने के लिए आपको डाइमिथोएट 30 ई. सी. दवा को 1.0 लीटर मात्रा मिला करके इसका स्प्रे कर देना चाहिए। इसके बाद मटर की फसल में फलीछेदक कीट को रोकने के लिए आपको मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी दवा की 750 मि. ली. के हिसाब से 800 लीटर पानी में मिलाकर के इसका स्प्रे कर देना चाहिए। इस प्रकार इस इन कीटों से छुटकारा पाया जा सकता है।
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