इस औषधीय फसल की खेती धीरे-धीरे किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है इसकी मांग बाजार में काफी बढ़ रही है इसकी खेती किसानों के लिए इनकम का नया स्रोत बन रही है। तो चलिए जानते है कौन सी फसल की खेती है।
औषधीय गुणों की खदान है ये फसल
आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बता रहे है जिसका आयुर्वेद में बहुत खाद महत्त्व है ये फसल औषधीय तत्वों से भरपूर होती है इसका उपयोग खीर, हलवा और शरबत बनाने में भी किया जाता है। इसकी खेती से किसान बहुत जबरदस्त कमाई कर सकते है। ये जड़ वाली फसल है जो हल्दी जाति का एक पौधा है। हम बात कर रहे है तीखुर की खेती की इसे अरारोट के नाम से भी जाना जाता है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से केरल, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में होता है। तो व्हलिये इसकी खेती के बारे में जानते है।

तीखुर की खेती
तीखुर की खेती बहुत लाभदायक होती है तीखुर की खेती के लिए 20-30°C तापमान अच्छी जल निकासी वाली थोड़ी अम्लीय दोमट मिट्टी सबसे आदर्श होती है। इसके पौधों को प्रकंदों के माध्यम से लगाया जाता है। इसकी बुआई के लिए 4-7 सेंटीमीटर लंबे, 2-4 कलियाँ वाले प्रकंदों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके प्रकंद को मिट्टी में लगभग 5-7.5 सेंटीमीटर गहरा दबाना चाहिए इसकी खेती में गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। बुआई के बाद तीखुर की फसल करीब 9-10 महीने में तैयार हो जाती है।
कितना होगा उत्पादन
तीखुर की खेती से बहुत जबरदस्त उत्पादन होता है इसके औषधीय और पौष्टिक गुणों के कारण बाजार में इसकी भारी मांग होती है। इसका उपयोग औषधीय, आटा, खाद्य और बेकरी उत्पादों में किया जाता है एक हेक्टेयर में तीखुर की खेती करने से 15-35 टन ताजे प्रकंद का उत्पादन मिलता है जिससे लगभग 2.5-7.5 टन प्रति हेक्टेयर स्टार्च प्राप्त होता है। आप इसकी खेती से लाखों का मुनाफा कमा सकते है। इसकी बिक्री बाजार में बहुत अधिक होती है।

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