पानी की है कमी ? तो धान की ये उन्नत किस्में लगाएं, आधे खर्चे और कम समय में होगी उपज

पानी की है कमी ? तो धान की ये उन्नत किस्में लगाएं, आधे खर्चे और कम समय में होगी उपज। जिससे जल्दी और कम लागत में हो जाए धान की खेती से आमदनी।

धान की खेती

धान की खेती की जब हम बात करते हैं तो पानी की जरूरत ध्यान में आती है। जिसमें जिनके पास पानी की बढ़िया व्यवस्था होती है वहीं धान की खेती कर पाते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं है धान की खेती अब कम पानी में भी की जा सकती है। क्योंकि जल स्तर घटता जा रहा है। जिसकी वजह से कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को राहत देने के लिए कुछ ऐसी किस्म विकसित की है, जिन्हे कम पानी की आवश्यकता होती है।

यानी कि अगर पानी की व्यवस्था अच्छी नहीं है फिर भी किसान धान की खेती कर सकते हैं। तो चलिए आज हम जानेंगे कि धान की कौन सी वह उन्नत किस्म है जिन्हें कम पानी में भी किया जा सकता है, उन्हें तैयार होने में कितना समय लगता है और प्रति हेक्टेयर उसमें कितने टन का उत्पादन मिलेगा। जिससे आप अपने अनुसार उनमें से किसी सही किस्म का चुनाव करके खेती कर सके।

धान की कुछ उन्नत किस्में

  • वंदना (आरआर 167-982)- यह धान बेहद कम समय में पकने वाली है। अगर आपको बहुत कम समय में धान की खेती करनी है तो इसे लगा सकते हैं। क्योंकि यह 90 से 95 दिन में इंतजार हो जाती है। बता दे की सबसे पहले इस धन की खेती 1992 में झारखंड के छोटा नागपुर पठार में की गई थी। वहीं उड़ीसा का जो ऊपरी इलाका है वहां साल 2002 में इसकी खेती की सूचना जारी की गई थी। इस किस्म की ऊंचाई की बात करें तो 95 से 110 सेंटीमीटर देखी गई है। इसकी खेती किसान उस स्थान पर भी कर सकते हैं जहां पर पानी कम हो और मिट्टी में अम्लता हो। क्योंकि यह उसके प्रति सहनशील रहती है। इस धान के दाने मोटे और लंबे होते हैं। अब इसके उत्पादन की बात करें तो 3.5- टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलेगा। वही रोग प्रतिरोध की क्षमता की बात करें तो यह सिर्फ दो रोगो जिसमें वंदना ब्लास्ट और ब्राउन स्पॉट रोग आते है इनके प्रति मध्य प्रतिरोधी मानी जाती है। इस तरह यहां पर इस किस्म की पूरी जानकारी दी गई है। आप अपने आवश्यकता के अनुसार इसके बारे में विचार कर सकते हैं। चलिए जानते हैं कुछ और किस्म के बारे में।
पानी की है कमी ? तो धान की ये उन्नत किस्में लगाएं, आधे खर्चे और कम समय में होगी उपज

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  • कामेश (सीआर धान 40)- पानी की बहुत बड़ी समस्या है या सूखा पड़ रहा है तो ऐसे क्षेत्र में इस धान की खेती कर सकते हैं। क्योंकि झारखंड और महाराष्ट्र में जब सूखे का मामला था तो 2008 में जारी और सूचना के अनुसार इसकी खेती की गई थी। इसे पकने में 110 दिन का समय लगता है और इसकी ऊंचाई 100 से 105 सेंटीमीटर देखी गई है। इसके उत्पादन के बात करें तो 3 से 3.5 टन प्रति हेक्टेयर देखी जाती है। यह उस जमीन में भी लगाई जा सकती है जो की समतल नहीं है। इसके अलावा ऊँचे इलाकों में अच्छी बारिश होती हो तो वहां यह इसकी खेती बढ़िया रहेगी। धान की यह किस्मत कई रोगों के प्रति प्रतिरोधी है। जिसमें सफेद पीठ वाला पौधा एफिड, पत्ती कर्लर, भूरा धब्बा, तना छेदक, और गॉल मिज ब्लास्ट आदि आते। इसकी खेती आप उन क्षेत्र में कर सकते हैं, जहां वर्षा कम होती है और ऊपर के क्षेत्र से सीधी बुवाई की जाती है। वहां के लिए यह बढ़िया रहेगी। इस तरह इन सारी बातों को ध्यान रखते हुए किसान इस किस्म का भी चुनाव कर सकते हैं।
  • सीआर धान 201- इस धान को भी पकने में कम समय लगता है। लगभग एक 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 3.8 प्रति टन हेक्टेयर है। इसके पौधे जल्दी गिरते नहीं है तो यह भी इसकी खासियत है। यह बिहार राज्य में 2012 और छत्तीसगढ़ में 2014 में अधिसूचित की गई थी। धान की यह किस्म व्हर्ल मैगॉट, पत्ती कर्लर, शीथ रॉट, ब्लास्ट, और तना छेदक रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी मानी जाती है। सीमित और अरबी परिस्थितियों के लिए बेहतर होती है। इस तरह यह भी एक जल्दी पकने वाले धान है, जिसे लगाकर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
  • सत्यभामा (सीआर धान 100)- सूखे से का प्रभावित क्षेत्र के लिए भी यह धान बढ़िया मानी जाती है। क्योकि साल 2012 में उड़ीसा के लिए इसे चुना गया था। जबकि वह क्षेत्र सूखाग्रस्त था। इसे तैयार होने में भी ज्यादा समय नहीं लगता है। तकरीबन 105-110 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता सूखे वाले क्षेत्र में 2.5 टन प्रति हेक्टेयर है। वहीं अगर परिस्थितियों सूख से अच्छी हैं तो 4.7 टन उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसे अर्ध बौनी किस्म के धान में रखा गया है। जिसकी ऊंचाई 90 से 105 सेंटीमीटर रहती है। धान की यह उन्नत कि व्हाइट-बैक्ड प्लांट एफिड, थ्रिप्स, लीफ कर्ल, गॉल मिज,राइस टुंगो वायरस, ब्राउन प्लांट एफिड, व्होरल मैगॉट, लीफ ब्लास्ट और हिस्पा के लिए मध्य रोग प्रतिरोधी है। इस तरह धान किस्म सूखे वाले क्षेत्र में कम और अनुकूल परिस्थितियों वाले क्षेत्र में बढ़िया उपज देती है, तो इस हिसाब से आंकड़ा लगाकर उसकी खेती की जा सकती है।

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