आलू की बुवाई का समय आ चूका है किसान बुवाई के लिए पहले खेत को अच्छे से तैयार करने में जुटे हुए है। खेत को तैयार करते समय बेसल डोज में ये उर्वरको को खेत की मिट्टी में जरूर डालें जिससे मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होती है। उचित तैयारी और पोषण से आलू की गुणवत्ता बढ़ती है आलू का आकर और चमक अच्छी होती है। तो चलिए इसके बारे में विस्तार से समझते है।
आलू का साइज होगा मोटा क्रीमी सफेद रहेगा गूदा
आलू की खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है धान की कटाई के बाद अधिकतर किसान आलू की बुवाई करना ज्यादा पसंद करते है आलू की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है मिट्टी में पोषक तत्व की पूर्ति की जाती है जिससे आलू की पैदावार के समय कोई कमी नहीं आती है। आलू की खेती के लिए पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए। फिर मिट्टी में गोबर की खाद के साथ बेसन और ट्राइकोडर्मा मिलाकर डालना चाहिए। ऐसा करने से न केवल मिट्टी में पोषक तत्व की पूर्ति होती है बल्कि फफूंदी और भूमि जनित बीमारियां भी नहीं होती है। इनके अलावा खेत में डालने के लिए हम आपको कुछ और फायदेमंद चीजों के बारे में बता रहे है जो आलू की फसल को स्वस्थ और अच्छी बनाए रखने के लिए बहुत जरुरी होती है।

बेसल डोज में डालें ये उत्कृष्ट उर्वरक
आलू के कंद का आकर अच्छा हो और चमक बनी रहे उसके लिए बेसल डोज में फास्फोरस, जिंक सल्फेट, बोरॉन जैसे उर्वरको का छिड़काव भी खेत में करना चाहिए। फास्फोरस पौधों के जड़ की ग्रोथ में मदद करता है। जिससे आलू की संख्या बढ़ती है। बोरॉन आलू के साइज और पैदावार में मदद करता है इसका उपयोग करने से आलू का आकर बढ़ता है और कंद फटता नहीं है। जिंक सल्फेट पत्तियों में हरियाली लाता है जिससे पौधे हरे भरे मजबूत रहते है। इनका उपयोग आलू की बुवाई के समय बेसल डोज में करना चाहिए। जिससे आलू की पैदावार बहुत जबरदस्त होती है
कैसे करें प्रयोग
आलू की खेती में ट्राइकोडर्मा नामक मित्र फफूंदी का इस्तेमाल सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर किया जाता है इनका इस्तेमाल करने के लिए 50 किलो सड़ी गोबर की खाद में 1 किलो बेसन और 2 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाकर नमी युक्त कर ढेर बनाकर 3 दिन के बाद खेत में डाला जाता है। ट्राइकोडर्मा खेत में जाकर फफूंदी और भूमि जनित रोगों को खत्म करता है जिससे आलू की फसल रोगों से सुरक्षित रहती है। बोरॉन का उपयोग तब करना चाहिए जब आलू का आकार बढ़ने लगता है।

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