धान के किसानों की जेब नहीं होगी खाली, बचेंगे 12500 रुपए, अपनाएं बुवाई का ये तरीका, होगा फायदा ही फायदा, वैज्ञानिक भी दे रहे यही सलाह

यहां धान की खेती का एक अद्भुत तरीका बताया जा रहा है, जिससे होंगे चार फायदे और प्रति हेक्टेयर बचेंगे 12500 रुपए-

धान की खेती का समय

धान की खेती का समय आ गया है, अब किसान धान की तैयारी में जुट गए हैं, जिसमें 10 से 20 जून तक धान की बुआई के लिए अच्छा समय माना जाता है। धान बोने के कई तरीके हैं, जिसमें आज आपको एक ऐसा तरीका बताने जा रहे हैं जिसके लिए सरकार किसानों से अनुरोध कर रही है, वैज्ञानिक भी सलाह दे रहे है, इससे किसानों को कई फायदे होंगे।

दरअसल, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार सीधी लाइन में धान बोने पर जोर दे रही है, इससे लागत कम आएगी, मेहनत कम होगी, उत्पादन बढ़ेगा और सरकार की तरफ से 50% सब्सिडी मिल रही है, साथ ही प्रति हेक्टेयर ₹12500 की बचत भी होगी, तो चलिए फायदे को अच्छे से समझते हैं।

धान की ऐसे करें बुवाई होगा भला

अगर किसान धान की फसल को बेहतर बनाना चाहते हैं तो उन्हें शुरुआत से ही ध्यान देना होगा, जिसमें धान के बीज की सीधी बुवाई कर सकते हैं। इससे खरपतवार पर नियंत्रण होगा, समय कम लगेगा और मेहनत भी बचेगी, हर पौधे को भरपूर पोषक तत्व मिलेंगे, फसल की देखभाल करना दूसरे तरीकों के मुकाबले आसान होगा, इसीलिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार धान की सीधी बुवाई पर जोर दे रही है। जिसमें धान को सीधे खेत में बोया जाता है बिना नर्सरी तैयार किये।

कृषि विभाग और दूसरे वैज्ञानिक भी किसानों को धान की सीधी बुआई की सलाह दे रहे हैं क्योंकि इससे पैसो की भी बचत होगी। जिसमें नर्सरी तैयार करने का खर्च, फिर रोपाई का खर्च और मजदूरी सब बचेगी। किसान हैप्पी सीडर और जीरो टिल ड्रिल मशीन से यह काम कर सकते हैं, सरकार इन पर 50% सब्सिडी दे रही है, जिसकी कीमत आधी रह जाएगी।

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1 हेक्टेयर में कितना धान बीज लगेगा

किसानों को धान के बीज बोते समय मात्रा का भी ध्यान रखना चाहिए, प्रति हेक्टेयर 6 से 8 किलो धान के बीज की जरूरत होती है, जिसमें अलग-अलग किस्मों के हिसाब से कम या ज्यादा किया जा सकता है, बताया जाता है कि हाइब्रिड किस्म के लिए 1 हेक्टेयर में 8 किलो की जरूरत होती है, वही मोटा और मध्यम दाने वाला धान है तो 1 हेक्टेयर में 35 किलो की जरूरत होती है . अगर एक हेक्टेयर में बारीक चावल की खेती कर रहे हैं तो 25 किलो की पैदावार होती है, इस तरह से यह चावल की अलग-अलग किस्मों पर ही निर्भर करता है।

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