गेहूं की खेती करने वाले किसान अगर भूरा रतुवा, काला रतुवा और पीला रतुवा रोग से अपनी फसल को बचाना चाहते हैं, तो आइये इनके लक्षण, नुकसान और बचाव के बारे में बताते हैं।
गेहूं की फसल में भूरा रतुवा रोग
अगर गेहूं की फसल में भूरा रतुवा रोग लग जाता है, तो इससे बहुत नुकसान होता है। पत्तियां सूखने लगती हैं और अंत में दाने पतले हो जाते हैं। इसलिए किसानों को इस रोग का जल्द से जल्द प्रबंधन करना चाहिए। लक्षण की बता करें तो जब गेहूं की फसल में भूरा रतुवा लगता है, तो पत्तियों पर भूरे या नारंगी रंग के छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं। वहीं उपाय यह है कि इसके बचाव के लिए किसान प्रोपिकोनाज़ोल या टेबुकोनाज़ोल दवा का छिड़काव कर सकते हैं।

गेहूं की फसल में पीला रतुवा रोग
अगर गेहूं की फसल में पीला रतुवा रोग लग जाए, तो पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर पीली धारियों में पाउडर जैसा पदार्थ दिखाई देता है। इससे पौधे की बढ़वार धीमी हो जाती है और उत्पादन कम मिलता है। उपाय किसानों को शुरुआत में ही रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए। साथ ही खेत का नियमित निरीक्षण करते रहना चाहिए, ताकि समय रहते बीमारी का प्रबंधन किया जा सके।

गेहूं की फसल में काला रतुवा रोग
कुछ किसानों ने पिछले वर्ष गेहूं की फसल में काला रतुवा रोग भी देखा था, जिससे काफी नुकसान हुआ था। यह रोग लगने पर पौधा कमजोर होने लगता है और सूख जाता है। जिसमें लक्षण की बात करें तो पत्तियों और तनों पर काले धब्बे दिखाई देते हैं। कभी-कभी ये धब्बे भूरे रंग के भी हो सकते हैं। उपाय इसमें यही है कि किसानों को खेत में पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। इसलिए खेत की तैयारी करते समय समतल और अच्छी तरह जलनिकासी वाला खेत तैयार करें, ताकि पानी रुक न सके।

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