आज हम बात कर रहे राजस्थान के राकेश चौधरी की जिन्होंने औषधीय खेती से एक नया इतिहास रच दिया है। उनकी सालाना टर्नओवर 10 करोड़ है और उनसे 50 हजार किसान जुड़े हुए हैं।
कौन है राकेश चौधरी
राकेश चौधरी राजस्थान के राजपुर गाँव के रहने वाले हैं। उनका परिवार पारंपरिक खेती से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बीएससी तक की पढ़ाई की है। उनका मन हमेशा से खेती से जुड़ा हुआ था इसलिए उन्होंने पढ़ाई करने के बाद खेती में ही आगे बढ़ने का सोचा।
हालांकि परिवार की आशा थी कि पढ़ाई के बाद बेटा जॉब करेगा पर उन्होंने खेती को ही अपना करियर के रूप में चुना। खेती में भी उन्होंने पारंपरिक खेती को नहीं चुना उन्होंने औषधीय खेती करने का मन बनाया। जिसमें उन्हें बहुत सारी परेशानी आयी, प्रोत्साहन नहीं मिला, पूंजी की कमी पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और औषधीय खेती की शुरुआत कर दी।
औषधीय खेती की शुरुआत कैसे की

जब वो अपने पिताजी के साथ पारंपरिक खेती करते थे तब उन्हें पता चला था कि स्टेट मेडिसिनल प्लांट बोर्ड औषधीय पौधों की कॉन्ट्रैक्चुअल फार्मिंग योजना के अंदर औषधीय पौधे उगाने पर किसानों को सब्सिडी देती है । पर उस टाइम पर लोग पारंपरिक खेती के अलावा कुछ अलग किस्म की खेती करने का रिस्क नहीं लेना चाहते थे। पर राकेश जी ने इस योजना से जुड़ने का सोचा जिसके बाद 2003 में स्टेट मेडिसिनल प्लांट बोर्ड की कॉन्ट्रैक्चुअल फार्मिंग योजना से उन्हें सहायता मिली जिसमें उन्हें विभाग के अधिकारियों से लाभकारी औषधीय पौधों के बारे में बताया।
खेती की शुरुआत में एक छोटे किसान होने के कारण जो परेशानियां आती हैं, उन्हें भी आई पर इनसब चीजों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने 2004 में औषधीय पौधे की खेती की शुरुआत की। पहली फसल उन्होंने मुलेठी और ग्लोरी लिली की लगाई। जैसा कि हम जानते हैं कि राजस्थान का मौसम इन सब फसलों की खेती के लिए थोड़ा मुश्किल होता है। जिसके वजह से उनकी फसल का नुकसान हो गया।
पर दूसरी बार उन्होंने राजस्थान की जलवायु पर अच्छे से अध्ययन किया और मार्केट की डिमांड समझी, जिसके बाद उन्होंने एलोवेरा को चुना। यह अत्यधिक गर्मी और हल्की ठंड दोनों को सहन कर लेता है। ऐलोवेरा के बहुत सारे फायदे हैं जैसे इसको इस्तेमाल करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य को काफी लाभ मिलता है। इसके पौधे के पत्तों में एक जैल जैसी सामग्री होती है जो न केवल सौंदर्य प्रसाधनों में बल्कि औषधीय उपयोगों में भी बहुत लोकप्रिय है। उनकी एलोवेरा की फसल 1.5 रुपये प्रति किलो बिकी। एलोवेरा की फसल ने उनके सफलता की राह खोल दी।
विनायक हर्बल नाम से खुद की कंपनी चला रहे
एलोवेरा की खेती से सफलता मिलने के बाद उन्होंने फैसला किया कि वे किसानों को औषधीय खेती के लिए जागरूक करेंगे क्योंकि इसकी डिमांड मार्केट में बहुत है और उत्पादन कम है, जिसके वजह से भाव अच्छे मिल जाते हैं। पहले उन्होंने राजस्थान के किसानों से संपर्क किया फिर दूसरे शहर के किसानों को जागरूक किया। कुछ सालों बाद 2017 में उन्होंने विनायक हर्बल नाम से अपनी कंपनी खोली जिसमें वो 120 तरह के औषधीय पौधों जैसे एलोवेरा, अश्वगंधा, कैमोमाइल, स्टीविया, चिया, अकरकरा, मेथी और सौंफ जैसे पौधे लगाए। आज उनकी कंपनी से जुड़े 50,000 से अधिक किसान ऑर्गेनिक हर्बल खेती कर रहे हैं। उनकी फसल फार्मा कंपनियों और डीलरों को सप्लाई होती है जिससे उन्हें 10 करोड़ तक की आमदनी हो रही है।
उनका कहना है कि अगर कोई युवा का परिवार पारंपरिक खेती से जुड़ा है या फिर खेती का कोई ज्ञान नहीं भी है तो वो अपने मार्केट और जलवायु का अच्छे से अध्ययन करके और सरकारी योजना की जानकारी इकट्ठा करके खेती को व्यवसाय में बदल सकते हैं। बस शुरुआत में धैर्य रखना होता है जैसे अन्य क्षेत्र में होता है। फिर खेती में उनका कोई हाथ नहीं रोक सकता। वो चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा युवा खेती को अपना करियर चुनें।
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