आज हम सफलता की कहानी में लेकर आए हैं पंजाब के रहने वाले किसान धर्मिंदर सिंह जी की कहानी, जिन्होंने कम लागत में शुरु किया वर्मीकंपोस्ट का व्यवसाय और उसे करोड़ों के टर्नओवर में बदल दिया है।
धर्मिंदर सिंह का परिचय
धर्मिंदर सिंह पंजाब के जिले मोहाली के रहने वाले हैं। उन्होंने 15 साल तक पर्सनल असिस्टेंट के तौर पर काम किया है। उनके मन में हमेशा से कुछ अपने बलबूते शुरू करने का मन था। एक दिन सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र मोहाली का एक प्रशिक्षण कार्यक्रम दिखा, जिसमें उन्हें जैविक उत्पाद बनाना और वर्मीकंपोस्टिंग के बारे में जाना। वहां से उन्होंने ठान लिया कि उन्हें वर्मीकंपोस्टिंग ही करना है।
वर्मीकंपोस्टिंग व्यवसाय की शुरुआत कैसे की
धर्मिंदर जी को पर्यावरण के स्वास्थ्य का हमेशा से ख्याल रहा है, इसलिए भी उन्होंने वर्मीकंपोस्टिंग को अपने व्यवसाय के तौर पर चुना, क्योंकि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को जीवंत रखता है। ज्यादा फसल की उत्पादन की होड़ में किसान रासायनिक खाद का इस्तेमाल तो कर रहे हैं, लेकिन मिट्टी की उपजाउता को घटाते जा रहे हैं।
शुरुआत उन्होंने 25 हज़ार रूपए लगाकर की थी। पहले साल 4 क्विंटल कंपोस्ट प्रति एकड़ की जरूरत होती है, जो चौथे साल आधे टन तक घट जाती है। इससे ये होता है कि उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। हर बेड (30×4 फीट) में लगभग 30 किलो केंचुए और 1,500 किलो गोबर डाला जाता है। केंचुए ऑस्ट्रेलियन रेड वर्म या कोई और केंचुए गोबर को तोड़कर 70-90 दिनों में वर्मीकंपोस्ट तैयार करते हैं। उन्हें एक बेड से करीब 600 किलो कंपोस्ट मिलता है।

कंपोस्ट की थोक कीमत 6-10 रुपय प्रति किलो तक है,जबकि पैक्ड यूनिट 20 रूपए प्रति किलो तक में बिक जाती है। वर्तमान में उनके पास 1000 से ज्यादा वर्मीकंपोस्ट बेड हैं, जो हर साल 2400 टन से ज्यादा कंपोस्ट तैयार करते हैं।
सालाना टर्नओवर 2 करोड़ से अधिक है
उनकी कंपोस्ट मोहाली,चंड़ीगढ़ और पंचकुला तक जाती है। उनकी सालाना टर्नओवर 2 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें उन्हें 50% तक का मुनाफा हो जाता है। वे अपने फार्म में बहुत से कर्मचारियों और मजदूरों को रोजगार भी देते हैं।
उन्होंने अभी तक 10 हज़ार से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दिया है। वे किसान अभी खुद का सेटअप चला रहे हैं। उनसे सीखने विदेशों से भी लोग आते हैं। उन्हें जिला स्तर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
वे चाहते हैं कि वे एक ऑर्गेनिक फार्म बनाएं, जहां वे सभी को ऑर्गेनिक खेती का प्रशिक्षण दे सकें और ज्यादा से ज्यादा युवा भी खेती से जुड़े हुए कार्यों से जुड़ें और अपनी मिट्टी व वातावरण को स्वच्छ बनाए।
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