इस लेख में किसान जानेंगे कि धान की खेती के लिए यूरिया की जगह कौन सी ₹50 की चीज इस्तेमाल की जा सकती है।
धान की खेती में यूरिया खाद का इस्तेमाल
धान की फसल से अच्छा उत्पादन पाने के लिए किसान यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। यूरिया खाद डालने से पौधे का विकास अच्छे से होता है, फसल तेजी से बढ़ती है, उत्पादन ज्यादा होता है, फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि आप रासायनिक खाद का ही इस्तेमाल करें। जैविक चीजें भी उपलब्ध हैं, जिनसे मिट्टी को उपजाऊ बनाया जा सकता है और पौधों को नाइट्रोजन पोषण दिया जा सकता है, तो चलिए आपको बताते हैं ₹50 का जुगाड़।
यूरिया की कमी को पूरा करेगी ₹50 की ये चीज
किसान अब बिना यूरिया के भी धान की खेती कर सकते हैं, जिसके लिए आपको धान की रोपाई से पहले ये काम पूरा करना होगा। दरअसल, आप एजोटोबैक्टर का इस्तेमाल कर सकते हैं, यह ₹50 में उपलब्ध है। प्रति हेक्टेयर 10 किलो मात्रा की आवश्यकता होती है। इसका इस्तेमाल करने के लिए खेत का अंतिम पृथक्करण करने से पहले आपको मिट्टी लेनी चाहिए या बेहतर होगा कि पुरानी गोबर की खाद, उसमें एजोटोबैक्टर मिलाएं और फिर पूरे खेत में फैला दें।

इसके बाद पृथक्करण के बाद आप धान की खेती कर सकते हैं। कुछ लोग नर्सरी तैयार करके धान की खेती करते हैं जबकि कुछ लोग छिड़काव विधि से भी करते हैं। आइए अब जानते हैं कि यह एजोटोबैक्टर कहां से मिलता है।
कहां से मिलता है यह एजोटोबैक्टर
कृषि वैज्ञानिक और सरकार दोनों ही किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। एजोटोबैक्टर की बात करें तो यह एक जैविक उत्पाद है जिससे पौधों को नाइट्रोजन मिलती है। दरअसल, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि वायुमंडल में 78% तक नाइट्रोजन पाया जाता है, लेकिन पौधे इसे सीधे अवशोषित नहीं कर पाते हैं। लेकिन अगर किसान इस एजोटोबैक्टर को मिट्टी में मिला दें तो पौधे वायुमंडल के इस नाइट्रोजन को मिट्टी के जरिए इस्तेमाल कर सकेंगे। अगर इस एजोटोबैक्टर को खरीदना चाहते हैं तो 1 किलो ₹50 में मिल रहा है. इसे उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर से खरीद सकते हैं. इस शोध परिषद की तरफ से लगातार किसानों को जानकारी दी जा रही है.
इसकी कीमत भी अच्छी है जिससे किसान इसे खरीद सकते हैं. इसके अलावा अगर किसान धान की बुवाई से पहले ढैचा लगाते तो बेहतर होता. ढैचा की फसल 45 दिन में तैयार हो जाती है और इसे खेत में मिलाने के बाद कोई भी दूसरी फसल लगाई जा सकती है. इससे जैविक तरीके से मिट्टी भी उपजाऊ बनती है।

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