मक्का की नई किस्म विकसित हुई, बार-बार खरीदने का झंझट खत्म, ऊंचाई कम होने से फसल तेज हवा से नहीं गिरेगी, 65.66 क्विंटल पैदावार मिलेगी

कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मक्का की नई किस्म विकसित की है, जिससे किसानों को अधिक उत्पादन मिलेगा और किसी तरह का नुकसान नहीं होगा-

मक्का की नई किस्म

मक्का की खेती में किसानों की अच्छी आमदनी हो जाती है। कई तरह से मक्का की डिमांड रहती है। आज हम मक्का की नई किस्म के बारे में बात कर रहे हैं, इससे किसानों को कई फायदे होंगे, यह पुरानी किस्म से ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है। कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हिम पाम कॉर्न कम्पोजिट 2 (एल 316) किस्म विकसित की है, जिसके बारे में जानकार हैरानी होगी।

इसकी खेती वे लोग भी कर सकते हैं जो खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं, जी हां क्योंकि अनाज के साथ-साथ चारे की भी सुविधा होगी। इसकी खेती हिमाचल प्रदेश का कोई भी व्यक्ति कर सकता है, जो मध्यमवर्ती पहाड़ी इलाकों में रहते है, अगर इसकी पैदावार की बात करें तो राज्य में उगाई जाने वाली अन्य किस्मों के मुकाबले 80% अधिक उत्पादन मिलेगा, जिसमें औसतन 65.66 क्विंटल पैदावार 1 हेक्टेयर से मिल सकता है। आइए आपको बताते हैं इसकी अन्य खासियत।

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इस किस्म की खासियत

नीचे दिए गए बिंदुओं के अनुसार इस कम्पोजिट मक्का किस्म हिम पाम कॉर्न कम्पोजिट 2 (एल 316) की खासियत के बारे में जानें-

  • सबसे पहले आपको बता दें कि अगर आप इस किस्म की खेती करते हैं तो बार-बार बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि एक बार लगाने के बाद इस बीज का इस्तेमाल 4 साल तक किया जा सकता है, हाइब्रिड की तरह आपको हर साल बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
  • यह किस्म टर्किकम ब्लाइट रोग, जीवाणु तना सड़न और कृमि रोग के लिए प्रतिरोधी है, जिसके कारण ऐसी समस्याएं नहीं आएंगी।
  • इसके अलावा सबसे अच्छी बात यह है कि यह फसल तेज हवा के कारण नहीं गिरेगी क्योंकि इसकी ऊंचाई मध्यम आकार की है, जिसके कारण किसानों को इतना नुकसान नहीं होगा कि फसल हवा के कारण पूरी तरह से जमीन पर गिर जाए।
  • आपको बता दें कि इसके दाने मोटे, दांतेदार और नारंगी रंग के होते हैं, जो देखने में बेहद आकर्षक लगेंगे।
  • यह किस्म 98 दिनों में तैयार हो जाती है।
  • अगर पशुपालक इस किस्म की खेती करेंगे तो उन्हें यह फायदा होगा कि वे इसकी पत्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं ऐसा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि पत्ते पकने तक हरे रहेंगे और पशु उसे खा सकेंगे तो चारे का खर्च भी बचेगा।

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