इस लेख में आपको मटर की खेती से अधिक उपज लेने के बारें में पूरी जानकारी दी गई है, जैसे इसकी खेती के फायदे, सही मिट्टी, बुवाई का समय, बीज की किस्में, खाद आदि-
मटर की खेती
क्या आपको भी हरी और ताज़ी मटर खाना पसंद है फिर वो सब्जी में हो या ऐसे ही, तो क्यों न आप खुद ही इसे ऊगा ले और जितनी मर्जी हो उतनी मटर खाएं। मटर की खेती कैसे की जाती है इसकी समस्या हम दूर किये देते हैं। आपको देते हर वो जरुरी जानकारी जिससे आप भी आसानी से मटर की खेती कर सकते हैं और एक अच्छी फसल भी पा सकते हैं।
मटर की फसल लैग्यूमिनसियाई फैमिली से सम्बन्ध रखती है और ठन्डे इलाकों वाली फसल है। यह फसल हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है।
कौन-सी मिट्टी है मटर के लिए फायदेमंद
मटर को मिट्टी की विभिन्न किस्मों जैसे रेतीली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ भरपूर मात्रा में होना जरुरी है। अगर आप इसे अच्छे निकास वाली मिट्टी पर उगाएंगे तो परिणाम भी बढ़िया मिलेगा। अच्छे निकास वाली मिट्टी से मतलब यह है कि जिस मिट्टी में पानी जमा ना हो आसानी से निकल सके। ध्यान रखने की बात यह है कि मिट्टी का पी एच 6 से 7.5 होना चाहिए और ये फसल जल जमाव वाले हालातों में खड़ी नहीं रह सकती है, तो भारी मिट्टी में भी मटर की फसल उगाने से बचें।

सितम्बर बुआई का सही समय, इस तरह करें भूमि की तैयारी
मटर एक दलहनी फसल है जिसकी खेती देश में अगेती और पिछेती किस्मों के आधार पर की जाती है। मटर की खेती, खासकर अगेती किस्मों की, सितम्बर के अंत से अक्टूबर की शुरुआत में की जाती है और पिछेती किस्मों की खेती नवम्बर के अंत तक होती है। मटर एक रबी की फसल है, जिसे ठंडी जलवायु में उगाया जाता है।
जमीन की तैयारी के लिए खरीफ ऋतु की फसल की कटाई के बाद सीड बेड तैयार झरने के लिए हल से 1-2 जुताई करें। हल से जोतने के बाद 2 या 3 बार तवियों से जुताई करें। खेत को समतल करना भी बेहद जरुरी है जिससे जल जमाव की समस्या उत्पन्न ना हो और बिजाई से पहले खेत की सिंचाई भी करें, यह फसल के अचे अंकुरन के लिए फायदेमंद होता है।
मटर की किस्में
मटर की कई प्रकार की किस्में मौजूद हैं जिनकी सबकी भिन्न-भिन्न पैदावार और खासियत है। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से इन मुख्य किस्मों में से किसी को भी उगा सकते हैं।
किस्में कुछ इस प्रकार हैं :-
- PG 3 : यह छोटे कद वाली अगेती किस्म है। जिसे तैयार में होने में लगभग 135 दिनों का समय लगता है। इसके फूल सफ़ेद जबकि दाने क्रीमी सफ़ेद होते हैं। मटर की इस किस्म पर सफ़ेद रोग कम होता है और फली छेदक का हमला भी कम ही होता है और यह किस्म सब्जी के लिए ज्यादा उपयोगी होती है।
- Matar Ageta 6: इसके दाने मुलायम और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म लुधियाना की ओर से तैयार की गई अगेती और छोटे कद की किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- Punjab 88: पंजाब 88 भी पी ए यू लुधियाना की किस्म है जिसकी फलियां गहरे हरे रंग की होती हैं और मुड़ी हुई होती हैं। इसको तैयार होने 100 दिनों का समय लगता है और औसतन पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- Field Pea 48: यह अगेती पकने वाली पकने वाली दरमियानी किस्म है जिसके दाने मोटे, हल्के हरे रंग के और झुरडियों वाले होते हैं। यह किस्म पकने में 135 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 27 क्विंटल प्रति एकड़ है और यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है।
- Punjab 89: इस किस्म की खास बात यह है कि इसकी फलियां जोड़े में उगती हैं। इसके बीजों का स्वाद मीठा होता है और बिजाई के 90 दिनों के बाद यह किस्म पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी फलियां 55 प्रतिशत बीज देती हैं और इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- AP 3: मटर की यह किस्म जल्दी पकने वाली है। यदि इसे अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोया जाए तो यह किस्म बिजाई के मात्र 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ के लगभग होती है।
- Matar Ageta 7: 32 क्विंटल प्रति एकड़ की औसतन उपज के साथ यह किस्म तैयार होने में 65 से 70 दिनों का समय लेती है। यानी आप लगभग 2 महीने में इसकी पहली तुड़ाई कर सकते हैं।
- Mithi Fali : मटर की यह किस्म मिठास और प्रोटीन से भरपूर होती है। इसे तैयार होने में 90 दिनों का समय लगता है और इसकी औसतन पैदावार 47 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- ये सभी मटर की किस्में प्रमुख और देशी किस्में हैं। इनके अलावा और भी किस्में होती हैं जैसे लिटल मार्वल, जवाहर मटर 3, ऊटी 1, अर्ली सुपर्ब। आप अपनी सहूलियत के हिसाब से इनमें से किसी भी किस्म की खेती बड़ी आसानी से कर सकते हैं।

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35 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ है सही मात्रा, इस तरह करें उपचार
बिजाई से पहले बीजों को थीरम या कप्तान 3 ग्राम या कार्बनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक तरीके से उपचार के बाद बीजों से अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्हें एक बार राइजोबियम लैग्यूमीनोसोरम से उपचार करें। इसमें 10 प्रतिशत चीनी या गुड़ का घोल होता है उसे बीजों पर लगाएं और फिर बीजों को छांव में सुखाएं, इससे 8-10 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि होती है। एक एकड़ में आप 35 से 40 किलोग्राम बीज की बुआई कर सकते हैं।
खाद की उपयुक्त मात्रा खपतवार नियंत्रण में सहयोगी
आप एक एकड़ में 45 किलोग्राम यूरिया (नाइट्रोजन 20 किलो) का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा सिंगल सुपर फासफेट की मात्रा 155 किलोग्राम तक हो सकती है जिसमें फासफॉरस की मात्रा 25 किलो होगी। इससे पैदावार पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। खादों की पूरी मात्रा कतारों के साथ डाल दें। खादों के अलावा मटर की खेती में किस्म के आधार पर एक यया दो गोड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली गोड़ाई 2-3 पत्ते आने की अवस्था पर या बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद की जाती है और दूसरी गोड़ाई फूल निकलने से पहले की जाती है।
मटर की खेती में नदीनों की रोकथाम के लिए नदीननाशक का प्रयोग सबसे प्रभावशाली होता है। नदीनों के नियंत्रण के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर या बसालिन 1 लीटर प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के 48 घंटों में नदीननाशक का प्रयोग करें।