आज हम सफलता की कहानी में लेकर आए हैं, मध्य प्रदेश के युवा की कहानी जिन्होंने 10 लाख की आईटी जॉब छोड़कर मशरुम की खेती में अपना भविष्य सवांर रहे हैं।
आशीष विश्वकर्मा का परिचय
आशीष विश्वकर्मा मध्य प्रदेश के सागर जिले के रहने वाले हैं। इन्होने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भोपाल के एलएनसीटी कॉलेज से की है। जैसा की हम जानते हैं कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर की तनख्वाह अच्छी होती है। आशीष को भी पढाई के बाद दिल्ली में 10 लाख के पैकेज वाली नौकरी मिली थी, जिसे उन्होंने थोड़े साल किया, फिर नौकरी छोड़कर अपने शहर आकर मशरूम की खेती करने की सोची।
मशरूम की खेती की शुरुआत कैसे की

अपने गांव आकर उन्होंने मशरूम की खेती करने का फैसला किया। उन्हें मशरूम में अलग किस्म की मशरूम की खेती करनी थी। वे अपने दोस्त शैलेंद्र सैनी के साथ विदेशी मशरूम की खेती की शुरुआत की। वैसे तो मशरूम बहुत किस्म के होते हैं पर उन्होंने ऑएस्टर मशरूम को चुना।
ऑएस्टर मशरूम बाकी सभी मशरूम में सबसे ज्यादा पौष्टिक होता है। ये विटामिन्स और माइक्रो न्यूट्रीएंट्स से भरपूर होता है जो की इम्युनिटी बढ़ाती है और बहुत सारी बीमारियों से शरीर को बचाती है। इसमें 1.6 से 2.5% प्रोटीन होता है। नियासिन शाकाहारी फूड्स में बहुत कम होता है, वह इसमें अच्छी मात्रा में पाया जाता है। यह अपने एंटीबायोटिक गुणों के लिए जाना जाता है।
खुद का लैब बनाया
आशीष ने दोस्त के साथ मिलकर खुद का एक ऑटोमेशन लैब तैयार किया है, जहां मशरूम उपजाने की पूरी प्रक्रिया नई तकनीक से की जाती है। इनकी लैब सेंसर और तकनीक से संचालित होती है। इसमें न तो किसी मजदूर की जरूरत पड़ती है और न ही निगरानी की जरूरत पड़ती है। इससे यह होता है कि उनके मशरूम हाइजीनिक होते हैं और लागत भी कम होती है।
बाकी मशरूम की खेती में ज्यादा समय लगता है पर ऑएस्टर मशरूम 60 दिन में तैयार हो जाती है। और इसकी मांग बाजार में बहुत रहती है। भारत के साथ दूसरे देशों में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है। क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छी मानी गई है।
मार्केट में डिमांड होने के कारण भाव भी अच्छे मिल जाते हैं। इनकी सालाना टर्नओवर लाखों में होती है। आशीष जी और उनके दोस्त की सफलता से यह साबित होता है कि नई तकनीक और सही रिसर्च से खेती एक बेहतर करियर के तौर पर साबित हो सकती है।
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