आज हम बात करेंगे गुजरात के किसान जगदीश जेराभाई चौहान की जो आम की बागवानी करके साल का लाखों कमा रहे हैं।
जगदीश जेराभाई चौहान का परिचय
जगदीश जेराभाई चौहान गुजरात के गाँव मोकल के रहने वाले हैं। वे अपने 3.5 एकड़ ज़मीन में पारंपरिक तरह से मक्का,अरहर धान और मिर्च की खेती करते हैं। उनका मन इन फसलों के अलावा बागवानी करने का भी था क्योंकि आमदनी बढ़ानी थी, जिसके लिए उन्होंने सोचा कि अपने 0.50 एकड़ ज़मीन में आम के पौधे लगाए। उन्होंने पता किया कि गुजरात में कौन से आम की किस्मों की मांग ज्यादा है। फिर उसके हिसाब से उन्होंने केसर, मल्लिका, राजापुरी, लंगड़ा और अल्फांसो जैसी किस्मों के आम के पौधे लगाए।
प्रशिक्षण से मिली हौसला
जगदीश जी ने केंद्रीय बागवानी प्रयोग केंद्र, वेजलपुर का दौरा किया। वहां उन्होंने आम की किस्मों को और बढ़ाने और छोटी नर्सरी बनाने का निर्णय लिया। केंद्र के वैज्ञानिकों ने उन्हें पौधे तैयार करने की तकनीकी जानकारी दी। उन्हें वहां सिखाया गया कि कैसे अपने देसी आम की गुठलियों से रूटस्टॉक तैयार किया जा सकता है जिसमें खर्च भी कम होता है। वे केंद्र द्वारा आयोजित कौशल विकास कार्यक्रम में भी शामिल हुए।
विशेषज्ञ हमेशा उनकी नर्सरी में आते थे और उन्हें बताते थे कि कैसे क्यारी बनानी है, पॉलीथीन बैग में मिट्टी कैसे मिलाए, कलम के लिए शाखाएं कब चुनें, पौधों की देखभाल कैसे करें और कलम लगाने का सही समय कौन सा है। और यह भी बताया कि सोशल मीडिया के माध्यम से पौधों को कैसे बेचे।
आम की नर्सरी से सालाना 4 लाख से ज्यादा की आमदनी हो रहीं
उन्होंने 2021 में 5500 कलमी आम के पौधे तैयार किए, उसके दूसरे साल 6000 कलमी आम के पौधे और ऐसे ही करते हुए वे हर साल पहले से ज्यादा पौधे तैयार करते चले गए। शुरुआत से अगले तीन साल में उन्होंने 15000 पौधे दूसरे जिलों में बेचे जैसे पंचमहल,महिसागर,दाहोद,खेड़ा, छोटा उदयपुर और वडोदरा। उन्होंने 100 रुपये प्रति पौधे बेचे। और अभी तो उनके पौधों की मांग भी मार्केट में बहुत हो गई है।
सीएचईएस के वैज्ञानिकों की देखरेख में सही मार्गदर्शन मिला जिससे उनकी आमदनी तीन साल में दोगुना हो गई। शुरुआत में उन्हें कुल लागत 2,25,000 रु लगी जिसमें कुल बिक्री 15,00,000 रु और शुद्ध लाभ 12,75,000 रु का हुआ। अभी हर साल उनकी आम के पौधों से कमाई 4 लाख रुपए से ज्यादा की हो रही है।
अब वे बड़े पैमाने पर रूटस्टॉक तैयार कर रहे हैं और अब उनकी अलग पहचान बन गई हैं। उन्होंने बहुत सारे मजदूरों को रोजगार भी दिया है। उन्होंने ये साबित कर दिया है कि बागवानी में स्थायी आमदनी भी हो सकती है।
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