पराली जलाने की समस्या समय के साथ बढ़ती जा रही है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है, और यही सब देखते हुए स्थायी समिति ने सरकार से किसानों को आर्थिक मदद देने की मांग की है-
पराली जलाने से होने वाले नुकसान
सबसे पहले हम पराली जलाने से होने वाले नुकसान की बात कर लेते हैं। उसके बाद किसानों को मिलने वाले लाभ की चर्चा करेंगे। पराली वह होती है जो धान, गेहूं जैसे फसलों की कटाई के बाद अवशिष्ट पदार्थ बचता है और उसे खेत में जलाने से जहरीला धुआं निकलता है और उससे पर्यावरण में प्रदूषण होता है। वह धुआं सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। जिन शहरों में पहले से ही वायु प्रदूषण है, वहां के आसपास के किसान अगर पराली जलाते हैं तो वायु प्रदूषण कहीं हद तक बढ़ जाता है। सांस लेने में भी दिक्कत आने लगती है। बीमारियां फैलती है।
लेकिन किसान अगर उस पराली का इस्तेमाल खाद बनाने या ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने के लिए करते हैं तो फायदा होगा। लेकिन इन सब चीजों में खर्च आएगा, तो चलिए आपको बताते हैं सरकार कैसे आर्थिक मदद करेगी।
किसानों को ₹100 प्रति क्विंटल
खेती-किसानी में कई तरह के खर्च आते हैं। जिसमें किसान अगर पराली को भी व्यवस्थित तरीके से रखने लगे तो उसके लिए भी मजदूरों की जरूरत पड़ेगी। इसलिए संसदीय स्थायी समिति ने सरकार से सिफारिश की है कि पराली की व्यवस्था करने के लिए, उसे एकत्रित करने के लिए, सरकार किसानों को ₹100 प्रति क्विंटल दें। यह एमएसपी से अलग राशि होगी। जिसे किसानों के खाते में भेजी जाएगी। इससे पराली की व्यवस्था करने में किसानों को जो पैसे खर्च करने होंगे उसमें मदद हो जाएगी।

संसदीय स्थायी समिति
संसदीय स्थायी समिति पराली जलाने की समस्या को बहुत गंभीर रूप से ले रही है। पराली जलाने से किसानों को भी नुकसान होता है, भूमि की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है, साथ ही वायु प्रदूषण होता है। इसीलिए संसदीय स्थायी समिति में केंद्र सरकार से किसानों को आर्थिक मदद देने की मांग की है। अगर यह मांग स्वीकार हो जाती है तो इससे किसानों के साथ-साथ समाज में रहने वाले अन्य लोगों को भी फायदा होगा और जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है उस पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। पराली जलाने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिसके नियंत्रण के लिए स्थाई समिति का यह कदम सराहनीय है।