चने की खेती करने वाले किसान भाई दे इन बातों पर ध्यान, अच्छी उपज और गुणवत्ता के साथ मिलेगा जबरदस्त मुनाफा

चने की खेती करने वाले किसान भाई दे इन बातों पर ध्यान, अच्छी उपज और गुणवत्ता के साथ मिलेगा जबरदस्त मुनाफा। चने की खेती में अच्छी उपज और गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए कई सावधानियों और अच्छे कृषि प्रबंधन की जरुरत होती है। नीचे चने की खेती में बरती जाने वाली मुख्य सावधानियों को विस्तार से बताया गया है।

उपयुक्त जलवायु और मिट्टी का चयन

चना शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छा उगता है। इसे ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु पाले से बचाना जरूरी है। चने के लिए दोमट, काली या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी का pH 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

बीज का चुनाव और उपचार

अच्छी किस्म के उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त बीजों का चयन करें। बीजों को बुवाई से पहले जैविक फफूंदनाशक से उपचारित करें। राइजोबियम कल्चर और PSB से बीजोपचार करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण और फॉस्फेट अवशोषण में सहायता मिलती है।

उचित समय पर बुवाई

समय पर बुवाई चने की उपज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चने की बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवंबर के पहले सप्ताह तक कर देना अच्छा रहता है। देर से बुवाई करने पर पाले और कीट रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

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बुवाई की विधि और दूरी

बीजों को 30 से 45 सेमी की पंक्ति से पंक्ति की दूरी और 10 से 12 सेमी पौधों की दूरी पर बोना चाहिए। बीज 5 से 7 सेमी की गहराई पर बोएं।

संतुलित उर्वरक प्रबंधन

चना एक दलहनी फसल है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिर करने में सक्षम है, फिर भी आधारभूत पोषक तत्व देना जरूरी है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 20 कि.ग्रा. पोटाश देना चाहिए। सल्फर भी चने की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने में सहायक है।

सिंचाई का प्रबंधन

चना वर्षा पर निर्भर फसल है, लेकिन यदि वर्षा नहीं हो तो जीवन रक्षक सिंचाई करें। पुष्प और दाना बनने की अवस्था पर एक सिंचाई अवश्य करें। अत्यधिक सिंचाई से जड़ सड़न का खतरा रहता है, अत: जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।

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खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के 25-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करें। चाहें तो पूर्व-बुवाई या बुवाई के तुरंत बाद पेन्डीमेथालिन जैसे खरपतवारनाशी का प्रयोग भी कर सकते हैं।

कीट एवं रोग प्रबंधन

    फली छेदक कीट सबसे अधिक नुकसान करता है, इसके लिए ट्राइकोग्रामा कार्ड या नीम तेल का प्रयोग करें। आवश्यकता पड़ने पर क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल या इंडोक्साकार्ब जैसे कीटनाशकों का प्रयोग करें। रोगों में उखटा रोग और कॉलर रॉट आम हैं। इसके लिए बीजोपचार जरूरी है। रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और फसल चक्र अपनाएं।

    फसल चक्र

    चने को एक ही खेत में लगातार न बोएं। चना के बाद मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली या गन्ने जैसी फसलें बोना अच्छा रहता है।

    कटाई और भंडारण

    जब पौधे और फली सूख जाएं और पत्तियां गिरने लगें तो फसल काटें। भंडारण से पहले दानों को अच्छी तरह सुखा लें ताकि नमी 10% से कम हो। भंडारण में कीट नियंत्रण के लिए नीम की पत्तियां या फॉस्फीन गैस टैबलेट का प्रयोग करें।

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