धान की फसल में खैरा रोग का प्रभाव दिखने पर तुरंत नियंत्रण के उपाय करना चाहिए जिससे फसल के उत्पादन में कोई खराब असर नहीं पड़ता है।
धान की पत्तियों में खैरा रोग का प्रभाव
धान की फसल में खैरा रोग के लक्षण पत्तियों पर पीले धब्बे के रूप में दिखते है जो बाद में भूरे रंग के हो जाते है ये रोग मुख्य रूप से मिट्टी में जिंक की कमी से होता है। इसकी रोकथाम के लिए जल्द से जल्द उपाय करना चाहिए जिससे ये फसल में फेल नहीं पाता है। इस रोग के लगने से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और कल्ले ज्यादा नहीं निकलते है ये रोग धान की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिनों बाद फसल में नजर आता है। तो चलिए जानते है इसकी रोकथाम के लिए क्या उपाय करना चाहिए।
धान की पत्तियों में करें इस घोल का छिड़काव
धान की पत्तियों में खैरा रोग के लक्षण दिखाई देने पर जिंक सल्फेट और चूने का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते है। जिससे मिट्टी में जिंक की कमी पूरी होगी और इस रोग से फसल का बचाव होगा। इसके अलावा धान के पौधों के नीचे शीथ होने लगती है जिससे तना नीचे से सड़ जाता है। ये एक फंगल रोग है जिसमें पत्तियां और तना नीचे से सड़ जाते है। इसके संक्रमण दिखने पर फफूंदनाशक दवा जैसे प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना चाहिए। जिससे फसल बच जाती है। और उत्पादन अच्छे से होता है।

कैसे करें प्रयोग
धान की पत्तियों में खैरा रोग को नियंत्रित करने के लिए 5 किग्रा जिंक सल्फेट और 2.5 किग्रा चूने को 1000-1200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर फसल में छिड़काव करना चाहिए ऐसा करने से मिट्टी में जिंक की कमी पूरी हो जाती है। इसके अलावा पत्तियों के नीचे तने में फंगल रोग या शीथ लगने पर 500 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है इसके छिड़काव से फसल की गुणवत्ता और उपज में काफी सुधार होता है।
नोट: इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभवों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध इंटरनेट स्रोतों पर आधारित है। किसी भी जानकारी का उपयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से परामर्श अवश्य करें।

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