किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं, इस कंपनी को बेचकर कमाई कर सकते है या खुद करोडो का व्यवसाय कर सकते है, जैसे की यह इंडस्ट्री कर रही है-
खेत के कचरे से करोड़ों की कमाई
खेत का कचरा, यानी भूसा और पराली, जिसे किसान अक्सर खेतों में जला देते हैं या फेंक देते हैं। कुछ किसान इसे अपने पशुओं को खिला देते हैं, लेकिन कुछ पराली और भूसा ऐसा होता है जिसे पशु भी नहीं खाते। ऐसे भूसे और पराली से भी कमाई की जा सकती है।
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के सतना में एक कंपनी है, जो इस कचरे से हर साल 5 करोड़ रुपए तक कमा रही है। यानी खेत से निकलने वाले इस कचरे से करोड़ों का मुनाफा हो रहा है, जिससे किसान और व्यापारी दोनों को फायदा हो रहा है। यह कंपनी किसानों से यह कचरा खरीदती है, उन्हें उसकी कीमत देती है और फिर उसका उत्पाद बनाकर बाजार में बेचती है। इससे किसान को पराली और भूसा से आमदनी हो जाती है और उसे जलाना नहीं पड़ता। अगर पराली खेत में जलाई जाती है तो इससे मिट्टी की उर्वरकता घटती है और पर्यावरण प्रदूषित होता है।
इंडस्ट्री का नाम और वह कचरे से क्या बनाती है, यह जानिए
अच्छी सोच के साथ लाखों–करोड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं। ऐसा ही उदाहरण है मध्य प्रदेश के सतना की “सोना मोना इंडस्ट्री” का, जो किसानों की मदद कर रही है और पर्यावरण को प्रदूषण से बचा रही है।
दरअसल, इस कंपनी का नाम कंपनी मालिक ने अपनी बेटी “सोनल” के नाम पर रखा है। इस कंपनी को शुरू करने के पीछे सोनल का ही विचार था। उनका मानना था कि किसानों की मदद की जानी चाहिए और खेतों से निकलने वाले पराली और भूसा का सही उपयोग किया जाना चाहिए।
सोनम ने दिल्ली में पढ़ाई के दौरान देखा कि पराली जलाने से कितना प्रदूषण होता है, इसीलिए उन्होंने इसका हल निकालने की ठानी और सोना-मोना इंडस्ट्री की शुरुआत की। इस कंपनी में पराली और भूसा से बायोमास ब्रिकेट्स बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग कोयले की जगह किया जाता है। इस तरह पराली से भी पैसे कमाए जा रहे हैं।
इंडस्ट्री की स्थापना में खर्चा और होने वाला मुनाफा
बायोमास ब्रिकेट्स यानी भूसे के गट्टे बनाने वाली यह सोना मोना इंडस्ट्री लगभग सात–आठ साल पहले स्थापित हुई थी। इसकी स्थापना में इन्हें सरकार से भी मदद मिली थी। उन्हें 25 प्रतिशत सब्सिडी सरकार से यूनिट लगाने के लिए मिली थी और शुरुआती निवेश के रूप में उन्होंने 50 लाख रुपए लगाए थे। बाद में, व्यापार बढ़ाने के लिए फिर से 50 लाख रुपए का निवेश किया गया।
कंपनी किसानों से ₹3000 से ₹3500 प्रति टन की दर से पराली और भूसा खरीदती है। इसके बाद ब्रिकेट्स बनाए जाते हैं, जिन्हें ₹5500 से ₹6000 प्रति टन की दर से बेचा जाता है। कंपनी मालिक बताते हैं कि इन बायोमास ब्रिकेट्स के निर्माण, परिवहन, मज़दूरी आदि में लगने वाले खर्च को निकालने के बाद उन्हें ₹500 से ₹1000 प्रति टन का शुद्ध मुनाफा होता है।इस व्यवसाय में अच्छा मुनाफा है। लकड़ी की जगह इन ब्रिकेट्स का उपयोग करने से पेड़ कटने से बचते हैं और कोयले की कमी की पूर्ति भी होती है। साथ ही, जैविक कचरे का भी सही उपयोग हो जाता है।

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