उपले-भूसे रखने के लिए अगर जगह नहीं मिल रही है, या बारिश में वह खराब हो रहा है, तो चलिए बताते हैं एक देसी जुगाड़। इसे अन्य किसान अपनाकर अपने उपले, भूसे और अन्य सामान को सुरक्षित रखते हैं।
बारिश में ख़राब होता है उपला या भूसा ?
उपले को कंडा भी कहा जाता है। यह गाय और भैंस के गोबर से बनाया जाता है। गाँवों में लोग इसे सुखाकर रख लेते हैं। फिर इसका इस्तेमाल चूल्हे में आग लगाने, उस पर खाना पकाने और दूध पकाने के लिए करते हैं।
उपला बागवानी में गोबर खाद की तरह भी उपयोग होता है, जिससे तरल खाद भी बनाई जाती है। इसके अलावा, खेतों में भी इसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। लंबे समय तक उपला सुखाकर सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन बरसात में अगर यह पानी में भीग जाए तो खराब हो जाता है और जलता भी नहीं है।
इसी तरह, कुछ किसान भूसा भी अपने पशुओं के लिए रखते हैं। लेकिन छोटे और सीमांत किसानों के पास बड़े-बड़े गोदाम नहीं होते। ऐसे में उनके लिए यह देसी जुगाड़ काम आता है।
उपला-भूसा रखने का देसी जुगाड़
कई किसान “बूंगा” का इस्तेमाल करते हैं। बूंगा को कुछ गाँवों में “बटोरा” भी कहा जाता है। दरअसल, बूंगा पुआल से बनी झोपड़ी होती है। इसमें पुआल को बारीकी से रखकर और बाँधकर कई हिस्सों में एक छपरी जैसी संरचना बनाई जाती है। यह झोपड़ी के ऊपर की छत की तरह होती है और गुंबदनुमा आकार ले लेती है। किसान इसे जमीन पर रख देते हैं और फिर इसके अंदर उपला और भूसा रख लेते हैं। इससे उन पर पानी नहीं पड़ता और वह बिल्कुल सूखे रहते हैं।

बिना किसी खर्चे के तैयार होता है यह जुगाड़
यह बूंगा बिल्कुल मुफ्त में तैयार हो जाता है। जैसा कि आप जानते हैं, किसानों के पास पुआल बहुत अधिक होता है। कई बार वह इसे खेतों में जला देते हैं, जबकि सरकार ने ऐसा करने से मना किया हुआ है। ऐसे में इस पुआल का उपयोग बूंगा बनाने में किया जा सकता है।
अगर इसे बगीचे के आसपास बनाया जाए, तो इसके ऊपर बेल वर्ग की सब्जियाँ भी चढ़ाई जा सकती हैं। इसे बनाने के लिए केवल पुआल और सूखी लकड़ियों की ज़रूरत पड़ती है। रस्सी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसमें सीमेंट या पत्थर जैसी कोई चीज़ नहीं लगती। इसी वजह से इसमें कोई खर्चा नहीं आता।
कई गाँवों के किसान पारंपरिक तौर पर इसका उपयोग करते आ रहे हैं। यह एक देसी जुगाड़ है, जिसमें भूसा और उपला सुरक्षित रखा जा सकता है और बारिश के पानी से बचाया जा सकता है।
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