सुगंधित औषधीय और मसालेदार फसल की खेती है किसी खजाने से कम नहीं, जाने कैसे होगी धन-दौलत की वर्षा। सौंफ एक सुगंधित औषधीय और मसालेदार फसल है, जिसका उपयोग मसाले के रूप में, औषधियों में और कई प्रकार के खाद्य उत्पादों में किया जाता है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में की जाती है।
जलवायु और मृदा
सौंफ समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी होती है। अधिक गर्मी या अत्यधिक ठंड दोनों इसके लिए हानिकारक होती हैं। हल्की दोमट, बलुई दोमट और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। pH मान 6.0 से 7.5 के बीच उत्तम रहता है। भारी चिकनी मिट्टी या जल जमाव वाली भूमि से बचना चाहिए।
सौंफ की किस्में
गुजरात फेनल-1 और 2
अजमेर फेनल
PF-35
Hisar Swarup
CO-1
खेती का सही समय
उत्तरी भारत में बुवाई अक्टूबर से नवम्बर के बीच की जाती है। दक्षिण भारत में बुवाई सितंबर से अक्टूबर तक होती है।
बीज दर और बुवाई विधि
बीजों को बुवाई से पहले जैविक फफूंदनाशक या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना चाहिए। कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखें। बीज 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल आने और बीज बनने की अवस्था पर पर्याप्त नमी का ध्यान रखें। जल भराव से बचें। अच्छी उपज के लिए गोबर की खाद या कम्पोस्ट 15-20 टन प्रति हेक्टेयर।
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सौंफ की खेती में खरपतवार नियंत्रण के साथ रोग और कीट नियंत्रण
बुवाई के 25-30 दिन बाद पहला निराई-गुड़ाई करें। जरूरत अनुसार 2-3 बार निराई-गुड़ाई करना लाभकारी है। रसायनिक खरपतवारनाशक का उपयोग भी कर सकते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू, झुलसा रोग, सेमी लूपर और सफेद मक्खी सामान्य रोग और कीट हैं। रोग नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम और डाइथेन एम-45 का छिड़काव करें। कीटों के लिए नीम तेल या उचित कीटनाशक का प्रयोग करें।
भंडारण
बीजों को पूरी तरह सूखाकर नमी रहित स्थान पर सुरक्षित रखें। जूट या प्लास्टिक के बैग में भरकर स्टोर करें।
सौंफ से कमाई
बुवाई के 5-6 महीने बाद जब फूल और बीज सूखने लगें तो कटाई करें। कटाई के बाद फसल को सुखाकर बीजों को निकालें और अच्छे से साफ-सुथरे स्थान पर सुखाएं। अच्छी देखरेख से 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है। सौंफ की खेती जैविक तरीके से भी की जाती है जिससे बाजार में अच्छे दाम मिल सकते हैं। पैकेजिंग करके सौंफ का मूल्य और लाभ बढ़ाया जा सकता है।
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