टिंडा की खेती किसानों को बना देती है धन्ना सेठ, जाने एक एकड़ में खेती से होने वाली आमदनी

On: Friday, August 15, 2025 5:57 PM
टिंडा की खेती

टिंडा की खेती से किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमाते हैं। तो चलिए, आपको इस लेख के जरिए टिंडा की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी देते हैं।

टिंडा की खेती

टिंडा की खेती किसानी के लिए मुनाफे का सौदा है। टिंडा का इस्तेमाल सब्जी के तौर पर तो किया ही जाता है, इसके अलावा इसके बीज और पत्तों का भी इस्तेमाल होता है। इसके बीज पेट संबंधी रोगों में औषधि के रूप में भी उपयोग किए जाते हैं।

तो चलिए, आपको बताते हैं, टिंडा की खेती से होने वाला फायदा, खेती का समय, आमदनी और बढ़िया वैरायटी के बारे में।

टिंडा की खेती में खाद

टिंडा की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को समय पर सही मात्रा में खाद का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए पहले मिट्टी की जांच करना जरूरी है। अगर जांच के अनुसार खाद डालेंगे तो खर्च कम होगा और उत्पादन अधिक मिलेगा।

सामान्यत: टिंडा की खेती के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे खर्च कम आता है और अच्छी जैविक खेती हो सकती है। गोबर की खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मौजूद होते हैं, जो पौधों के लिए फायदेमंद हैं।

अगर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट और पोटाश डाल सकते हैं। प्रति एकड़ — यूरिया 40 किलो, एसएसपी 125 किलो और पोटाश 20 किलो की मात्रा सही रहती है।

टिंडा की खेती का समय

टिंडा की खेती करने का सही समय फरवरी से मार्च और जून से जुलाई के बीच होता है। साल में दो बार इसकी खेती की जा सकती है। फरवरी-मार्च में जायद की फसल और जून-जुलाई में खरीफ की फसल लगाई जाती है। टिंडा की फसल 60-70 दिन में तैयार हो जाती है। यानि कि ज्यादा समय नहीं देना पड़ेगा।

टिंडा का बीज

टिंडा भारतीय गोल लौकी (एप्पल लौकी) के परिवार से होते हैं, जो गर्मी और बरसात में उगाए जाते हैं। टिंडा की खेती करने के लिए बीजों को पानी में भिगोकर कपड़े में लपेटकर, गोबर की खाद में लगभग 12 घंटे रखना चाहिए। इसके बाद बोने से अच्छा अंकुरण होता है और अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है।

इसके अलावा बीज उपचार भी जरूरी है। टिंडा के बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए और दो पौधों के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इससे उत्पादन बेहतर मिलेगा।

टिंडे का पौधा कैसा होता है

टिंडा एक सब्जी है, जिसका पौधा लता वाला होता है, यानी बेल वर्ग की फसल। इसे सहारे की जरूरत पड़ती है। यह गोल लौकी के परिवार से संबंध रखने वाली सब्जी है। इसके पत्ते बड़े और गोल होते हैं, पौधों में पीले रंग के फूल खिलते हैं और फल गोल, हल्का हरा तथा आकार में छोटा होता है।

टिंडा की वैरायटी

टिंडा की कई वैरायटी हैं, जिनका किसान चयन कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए मंडी की मांग, क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी का ध्यान रखना चाहिए। लोकप्रिय वैरायटी में, टिंडा, एस-48, आरका टिंडा, पंजाब टिंडा, माही टिंडा, चित्रा गोल्डन टिंडा और हिसार टिंडा शामिल हैं।

  • जिसमें टिंडा एस-48 बढ़िया किस्म है जो कम समय में फल देती है और बेल 75 से 100 सेमी लंबी होती है। इसका चयन किसान भाई कर सकते है।
  • फिर पंजाब टिंडा-1- भी बढ़िया किस्म है। इस किस्म के गोल, चमकदार, और सफेद गुद्दे वाले फल रहते है।
  • इसके आलावा अर्का टिंडा भी अच्छी किस्म है। फल गोल, हरे, और बालों वाले देखने को मिलते है। जो बढ़िया होता है।
  • वही हिसार टिंडा भी बढ़िया किस्म है। यह जल्दी फल देने के लिए जानी जाती है। इसका फल गोल, हरा और बालों वाला रहता है।
  • किसान माही टिंडा किस्म का चयन कर सकते है। यह हाइब्रिड किस्म है इससे उत्पादन बढ़िया मिलता है, और गर्मी सहनशील मानी जाती है।

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टिंडे की खेती से आमदनी

टिंडा की खेती अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा मुनाफा देती है। उत्पादन की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 80 से 120 क्विंटल और प्रति एकड़ 40 से 50 क्विंटल तक उपज मिलती है। कीमत 50 से 60 रुपये प्रति किलो तक मिल सकती है, जो अलग-अलग मंडियों में भिन्न हो सकती है। उत्पादन मिट्टी, जलवायु और वैरायटी पर निर्भर करता है। इस तरह, टिंडा की खेती से लगभग ₹3 लाख तक की कमाई संभव है।

टिंडा की खेती में खर्चा

टिंडा की खेती में खर्च की बात करें तो 15 से 20 हजार रुपए इसमें लागत आती है। जिसमें मुनाफा अगर देखे तो खर्चा कम ही है। इसमें खेत तैयारी, बीज , खाद आदि का खर्चा आता है। वही किसान के पास अगर खेती से जुड़े साधन अधिक है तो खर्चा कम हो सकता है।

टिंडा की खेती से लाभ

टिंडा की खेती में किसानों को काफी लाभ होता है। यह कम खर्च में की जा सकती है और उत्पादन भी अच्छा मिलता है। यह आमदनी का एक अच्छा विकल्प है। टिंडा की खेती खरीफ और जायद, दोनों मौसम में की जा सकती है, यानी इसमें फसल चक्र अपनाया जा सकता है। यह जल्दी तैयार होने वाली फसल है।

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