चॉकलेट की खेती करके किसान दूसरी फसलों से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। वे एक एकड़ से 12 लाख रुपये कमा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे-
चॉकलेट की खेती
चॉकलेट बच्चों की पहली पसंद होती है। किसान इसकी खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। दरअसल, यहाँ हम कोको की बात कर रहे हैं। चॉकलेट कोको से बनती है। कोको की खेती में किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है। एक एकड़ ज़मीन से जहाँ धान और गेहूँ जैसी दूसरी फसलों से कुछ हज़ार रुपये का मुनाफ़ा होता है, वहीं कोको की खेती से 12 लाख रुपये कमाए जा सकते हैं। यानी यह कहीं ज़्यादा मुनाफ़ा दे सकता है।
कोको की खेती इंटरक्रॉपिंग के तौर पर, यानी दूसरी फसलों के साथ की जा सकती है, यानी एक एकड़ ज़मीन से दोगुना मुनाफ़ा मिल सकता है। अगर दूसरी फ़सलें लगाई जा रही हैं, तो उनके साथ कोको भी लगाया जा सकता है।

एक एकड़ से उत्पादन कितना मिलता है
अगर किसान एक एकड़ में कोको की खेती करते हैं, तो उन्हें लगभग 500 पेड़ लगाने होंगे। उत्पादन की बात करें, तो एक पेड़ से 3 किलो बीज निकलते हैं। जी हाँ, कोका के बीज बिकते हैं, अगर इसकी कीमत की बात करें, तो यह ₹800 प्रति किलो है। इस हिसाब से एक पेड़ से ₹2400 की कमाई होती है, और 500 पेड़ों से 12 लाख तक का अच्छा मुनाफ़ा मिल सकता है, लेकिन कोको की खेती के लिए जलवायु भी ज़रूरी है, तो आइए इसके बारे में जानते हैं।
कोका की खेती कहाँ की जाती है
उष्णकटिबंधीय जलवायु कोको की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। जिन क्षेत्रों का तापमान 18 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, वे कोका के पेड़ों के लिए अच्छे माने जाते हैं। अगर वर्षा की बात करें, तो कहा जाता है कि इसके लिए 1500 से 2000 मिमी वर्षा अच्छी मानी जाती है। कोको के पौधे उच्च आर्द्रता में लगाए जा सकते हैं। शुरुआत में कोको के पेड़ों को छायादार वातावरण पसंद होता है, इसके लिए इंटरक्रॉपिंग अच्छी रहेगी, जिसमें बड़े पेड़ों के नीचे इसके पेड़ लगाए जा सकते हैं।
कोका की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी और जल निकासी की आवश्यकता होती है। कोको के पेड़ लगभग 3 साल में तैयार हो जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में फली आने में 5 साल तक का समय लगता है। फसल की अवधि 150 से 170 दिनों के बीच बताई जाती है।
लगभग 70% कोको पश्चिमी अफ्रीका में उगाया जाता है, लेकिन कोको की खेती मध्य दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया में भी की जाती है। किसी भी तरह की नई फसल लगाने से पहले अपने खेत की मिट्टी, अपने क्षेत्र की जलवायु आदि को ध्यान में जरूर रखना चाहिए कि वहां फसल अच्छी होगी या नहीं, उत्पादन देगी या नहीं।