Zucchini: किसान अगर कोई नई फसल लगाना चाहते हैं, तो चलिए एक ऐसी सब्ज़ी की खेती की जानकारी देते हैं जिसे अभी कुछ ही जगहों पर किसान उगा रहे हैं। कृषि विभाग भी इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है।
जुकिनी की खेती
यहाँ हम जिस फसल की बात कर रहे हैं, उसे कुछ जगहों पर जुकिनी या झुकिनी कहा जाता है। कई क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र किसानों को इसकी खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं, प्रशिक्षण दे रहे हैं तथा बीज का वितरण भी किया जा रहा है। जैसे हजारीबाग, झारखंड के कृषि प्रधान जिलों में किसानों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
जुकिनी की खेती में किसानों को बहुत फायदा है। एक एकड़ से किसान 4 से 8 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि इससे 10 से 12 टन उत्पादन आसानी से मिल जाता है। एक बीघा जमीन में भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
कीमत की बात करें तो एक पौधे से 8 से 10 फल मिलते हैं। एक फल की कीमत ₹20 से ₹60 तक मिल जाती है। बाजार में इसकी कीमत लगभग ₹80 से ₹100 प्रति किलो तक रहती है। एक पीस का वजन आधा से 1 किलो तक होता है। इस आधार पर किसान आराम से अपनी कमाई का अनुमान लगा सकते हैं।
अगर किसान एक एकड़ में जुकिनी की खेती करते हैं और औसतन ₹80 प्रति किलो का भाव भी मिलता है, तो 10 टन उत्पादन पर 8 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। खर्चों की बात करें बेड बनाना, खेत की तैयारी, बीज खरीदना, सिंचाई, मल्चिंग, मजदूरी आदि शामिल हैं। इन सभी खर्चों को निकाल देने के बाद भी 4 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा 2 महीने की फसल से मिल जाता है, जो बेहद लाभकारी माना जाता है।

जुकिनी कैसी दिखती है?
जुकिनी देखने में खीरा और कद्दू का मिश्रण लगती है। यह हरे, पीले और नीले रंग में पाई जाती है। मुख्य रूप से किसान हरे और पीले दो वैरायटी लगाते हैं। इसकी खेती करना भी आसान है।
जुकिनी की खेती कैसे होती है?
जुकिनी की खेती बेड बनाकर की जाती है और प्लास्टिक मल्च का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें 25 माइक्रोन का प्लास्टिक मल्च लगाया जा सकता है। 3 फीट की दूरी पर बेड बनाए जाते हैं। 2 फीट की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं। एक बीघा में लगभग 1500 पौधे लगाए जा सकते हैं। यह फसल लगभग 2 महीने में तैयार हो जाती है।
जुकिनी की खेती का समय क्या है?
जुकिनी की खेती हमारे देश में रबी और खरीफ दोनों सीजन में की जा सकती है। रबी अक्टूबर–नवंबर, खरीफ अप्रैल से अगस्त में इसे लगाया जाता है। अगर जलवायु अनुकूल न हो तो इसे पॉलीहाउस में भी उगाया जा सकता है। पॉलीहाउस में इसका उत्पादन बेहतर मिलता है और किसान साल में तीन बार इसकी खेती कर सकते हैं।

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