67 वर्षीय किसान रामरतन निकुंज ने छत्तीसगढ़ में रचा इतिहास, वर्मी ग्रिड मेथड से की धान की बंपर उत्पादन

On: Thursday, November 27, 2025 2:29 PM
सक्सेस स्टोरी

आज सफलता की कहानी में हम लेकर आए हैं छत्तीसगढ़ के किसान रामरतन निकुंज जी की कहानी, जिन्होंने धान की रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन से इतिहास रच दिया है। 

रामरतन निकुंज का परिचय 

किसान रामरतन निकुंज छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के झगरहा गाँव के रहने वाले हैं। उनकी उम्र 67 वर्ष है। पहले वे दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड में काम करते थे, जिसमें उनकी पोस्ट फोरमेन इंचार्ज की थी। 2018 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने मन बना लिया था कि उनको उनके 5 एकड़ ज़मीन में मॉडल फार्म बनाना है। इसके बाद उन्होंने अपने खेत में  खेती की शुरुआत की और अब अपनी खेती के तरीके की वजह से अपनी अलग पहचान बनाई है। आइए उनकी पूरी कहानी जानते हैं। 

वर्मी ग्रिड मेथड ने दिलाई पहचान 

रामरतन निकुंज ने अपने 5 एकड़ जमीन पर खेती की शुरुआत की, जहां वे पारंपरिक कतार बोनी और श्री विधि से धान की खेती की। कुछ सालों तक वे इस तरह से खेती करते रहे। फिर उन्होंने खेती को नए सिरे से करने की सोची, जिसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन और कृषि विभाग से संपर्क किया। वहां के अधिकारी ने उन्हें वर्मी ग्रिड मेथड और वैज्ञानिक खेती के सही तरीके समझाए।  वहां से प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने वर्मी ग्रिड मेथड से धान की खेती शुरू की।  

2023  में उन्होंने वर्मी ग्रिड मेथड से धान की खेती शुरू की। इस पद्धति में खेत को उन्होंने छोटे छोटे ग्रिड में बांटा और हर खंड में वर्मी कम्पोस्ट ( केचुआ खाद ) डाली, इन से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पौधों को सही पोषण मिलता है। इन सब के अलावा खरपतवार को वीडर के इस्तेमाल से हटाया जाता है, इस वजह से रासायनिक दवाओं की जरूरत ना के बराबर रहती है। उन्होंने अपने खेत में दिन-रात मेहनत की और अब उन्हें उनके खेत से रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन मिला रहा है। 

वर्मी ग्रिड मेथड से प्रति एकड़ 106 क्विंटल धान का उत्पादन  

रामरतन निकुंज ने वर्मी ग्रिड पद्धति को अपनाते हुए 2024 में हाइब्रिड धान की खेती की। इस पद्धति से उन्हें प्रति हेक्टेयर 106 क्विंटल धान की रिकॉर्ड तोड़ पैदावार हुई। इस साल 2025 में उन्होंने धान की सुगंधित देवमोगरा किस्म पर भी सफल प्रयोग करके दिखाया है। उनकी धान से आमदनी पहले से दोगुनी हो गई है, जिससे वे काफी संतुष्ट हैं। 

उन्होंने बताया कि उनको राज्य सरकार की ओर से चल रही योजनाओं से उन्हें वर्मी कम्पोस्ट सयंत्र, बीज और प्रशिक्षण मिला , जिससे उन्हें नई तकनीक अपनाने में मदद मिली और आज इसी वजह से वे ये सब कर पाए हैं। अब उन्होंने जो सीखा है, वे अपने आसपास के किसानों को इस पद्धति से खेती करने को सीखा रहे हैं और उन्हें जैविक खेती और पर्यावरण अनुकूल खेती को करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। 

उनकी सफलता की कहानी यह दर्शाती है कि खेती अब पारंपरिक पद्धति तक सीमित नहीं रह गई है। खेती में नवाचार और आधुनिकता अपना कर बढ़िया आय अर्जित की जा सकती है। 

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