आज हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अंशुल मिश्रा जी की, जो ड्रैगन फ्रूट की खेती से सालाना 20 लाख तक कमा रहे हैं और दूसरों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं।
कौन हैं अंशुल मिश्रा
अंशुल मिश्रा उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई चेन्नई से की है। अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सोच लिया था कि उन्हें खेती में कुछ करना है। वे इंटरनेट पर खेती से जुड़ी रिसर्च करते रहते थे। उन्होंने अपने पिताजी से सहमति लेकर खेती करने की अपनी सोच को हकीकत में बदलने की ठानी। जिसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर अपने गाँव आकर खेती की शुरुआत की।
खेती की शुरुआत कैसे की
अंशुल ने जॉब छोड़ दी और अपने गाँव वापस आ गए। गाँव आकर देखा तो उनकी 1 एकड़ जमीन बंजर पड़ी थी। बंजर जमीन को वापस उपजाऊ बनाना उनके लिए बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए जो करना चाहिए था, वह सब किया खाद के लिए गोबर डलवाया, जमीन को जोतवाया, फिर जाकर उनकी जमीन फसल लगाने के लिए तैयार हुई।
उन्होंने रिसर्च करके यह पाया कि उन्हें अपनी पहली फसल कौन सी चुननी चाहिए जिससे उनकी मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरे। जिसके बाद उन्होंने अपने खेत में दालों की खेती करने का निर्णय लिया। दालों की खेती से मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ता है, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है और खाद की जरूरत कम पड़ती है। उनकी गहरी जड़ें मिट्टी को मजबूत बनाती हैं और पानी रोकने की क्षमता बढ़ाती हैं। दालों की खेती करने से उनकी मिट्टी का स्वास्थ्य पहले से बेहतर होने लगा। मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरने के साथ ही उन्होंने लगातार ऐसे फसलों के बारे में जानने की कोशिश की जिससे कम जमीन में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें ड्रैगन फ्रूट के बारे में पता चला, जिसके बाद उन्होंने इसकी खेती करने की सोची।
ड्रैगन फ्रूट की खेती नई तकनीक से की

अंशुल को पता चला कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में बहुत फायदे हैं, क्योंकि इसके पौधे को एक बार लगाने के बाद यह साल में 6 से 7 बार फल देता है। गेहूं जैसी फसलों को हर 6 महीने में दोबारा बोना पड़ता है, जबकि ड्रैगन फ्रूट का पौधा 35 साल तक फल दे सकता है अगर यह जीवित रह गया तो। यह सारी बातें समझने के बाद अंशुल ने इसकी खेती करने की सोची , जिससे लंबे समय तक आमदनी होने की संभावना बनी रहती है।
खेती के लिए ड्रैगन फ्रूट के 1600 पौधे उन्होंने महाराष्ट्र से मंगवाए। अंशुल ने जगह बचाने के लिए नई तकनीक अपनाई, जिसे वॉल फार्मिंग कहा जाता है। यह एक इजरायली तकनीक है जिसमें पौधों को दीवारों पर उगाया जाता है। इसमें ड्रैगन फ्रूट को जमीन पर नहीं, बल्कि जमीन से सात फीट ऊपर लगाया जाता है। इस तरह एक ही दीवार का इस्तेमाल किया जाता है। दीवारों पर ज्यादा वजन न पड़े, इसलिए प्लास्टिक के मोटे पाइपों को गमले के तौर पर इस्तेमाल किया गया। इस तरीके को उन्होंने अपने गाँव के नाम पर ‘चिलौआ मॉडल’ नाम दिया।
उन्होंने अपने 1 एकड़ जमीन में इस तकनीक से पौधे लगाए। बाकी सभी फसलों की तरह ड्रैगन फ्रूट की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती और मॉनसून में तो सिंचाई की जरूरत होती भी नहीं। इसके पौधे 10 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी उग सकते हैं। उनकी पहली फसल को तैयार होने में 18 महीने लगे। हालांकि यह पहली फसल थी, इसलिए थोड़ा समय लगा। मई से दिसंबर तक फल लगने के मौसम में पौधों में लगभग हर 45 दिन में फल लगते हैं, जिससे प्रति एकड़ 30 क्विंटल तक फल निकलते हैं। उनके फल की कीमत 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।
खेती और नर्सरी से 20 लाख का टर्नओवर
1 एकड़ से खेती की शुरुआत की थी और आज वे लगभग 5 एकड़ से ज्यादा में खेती कर रहे हैं। खेती के साथ उन्होंने नर्सरी भी शुरू की है, जिससे उन्हें दोगुनी आमदनी हो रही है। उनका सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपये तक पहुंच गया है। उनके ड्रैगन फ्रूट जैविक ढंग से उगाए जाते हैं, जिसके कारण ये जल्दी खराब नहीं होते और उनकी फसल उनके अपने शहर के अलावा दूसरे शहरों जैसे बरेली, फर्रुखाबाद और हरदोई के आसपास के जिलों में भी भेजी जाती है, जहाँ इसकी मांग बहुत रहती है।

उनकी खेती की तकनीक सीखने लोग भारत के हर कोने से आते हैं और अब भारत के बाहर से भी लोग आने लगे हैं। उनके चिलौआ मॉडल की सराहना उत्तर प्रदेश की गवर्नर ने भी की है, जिससे उनका हौसला और बढ़ गया है।
उनकी सफलता हर एक युवा के लिए खेती में सफलता का एक बड़ा उदाहरण बन गई है। अंशुल ने साबित कर दिया है कि खेती को करियर के तौर पर चुनकर युवा लाभदायक व्यवसाय बना सकते हैं।

नमस्कार! मैं पल्लवी मिश्रा, मैं मंडी भाव से जुड़ी ताज़ा खबरें लिखती हूं। मेरी कोशिश रहती है कि किसान भाइयों को सही और काम की जानकारी मिले। ताकि आप अपनी फसल सही दाम पर बेच सकें। हर दिन के मंडी भाव जानने के लिए KhetiTalks.com से जुड़े रहिए।