आज हम बात करेंगे ओडिशा के कोरापुट जिले की रहने वाली महिला किसान की जिन्होंने 32 किस्म की मिलेट और 72 किस्म की धान को विलुप्त होने से बचाया है। महिलाओं के लिए बन गई है मिसाल।
कौन हैं रायमती देवी घुरिया
रायमती देवी घुरिया ओडिशा के कोरापुट जिले की रहने वाली हैं। वो एक किसान परिवार से हैं, इसलिए उन्हें खेती की अच्छी जानकारी थी। वो अपने पिता का खेती में हाथ बंटाया करती थीं। उनके खेत में मिलेट्स, मुख्य अनाज, दाल और सब्जियों की खेती होती थी। उनके खेत में खेती मिश्रित और अंतर-फसली प्रणाली को अपनाकर की जाती थी। ये उनके समुदाय की परंपरा थी। उनकी शादी 16 साल की उम्र में हो गई, जिसके बाद कुछ साल वो घर के काम में उलझ गईं, पर उन्होंने खेती का साथ नहीं छोड़ा और वो हमेशा खेती से जुड़ी रहीं।
मिलेट्स संरक्षण की प्रेरणा कहां से मिली
देसी फसलों की खेती में उन्हें हमेशा से लगाव था। उन्होंने देखा कि किसान भाई देशी फसलों की खेती छोड़कर नकदी फसलों की खेती की ओर बढ़ते जा रहे हैं। वे आलू, कपास जैसी नकदी फसलें ज्यादा उगा रहे थे क्योंकि बाज़ार में इसके पैसे ज्यादा मिलते और इसमें समय और मेहनत कम लगती है। इन सबका असर यह हो रहा था कि हमारे पारंपरिक फसलों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था और ये विलुप्त होने के कगार पर आ गई थीं।
उन्हें एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) द्वारा होने वाली बैठक के बारे में पता चला, जिसमें उन्होंने भाग लिया। वहाँ देशी बीजों के बचाव और जैविक खेती के बारे में चर्चा हुई। उस दिन उन्हें यह बात गहराई से समझ आई कि कैसे एक फसल के विलुप्त होने का असर पूरे ज्ञान तंत्र पर पड़ता है। उस दिन उन्होंने मन में ठान लिया कि वे अपने तरफ से जो हो सकेगा वो करेंगी और विलुप्त होती फसलों को बचाएंगी। उन्होंने वहाँ आधुनिक संरक्षण कैसे करते हैं, यह भी सीखा।
वे पद्मश्री कमला पुजारी जी से भी बहुत प्रभावित रहती थीं। वे हमेशा उनके बारे में सुनती थीं। कमला पुजारी जी ने अपना जीवन देशी धान की किस्मों के संरक्षण में लगा दिया था। उनकी ही तरह रायमती देवी ने भी मिलेट्स की विलुप्त होती किस्मों को संरक्षण करने सोचा।
32 किस्म की मिलेट्स और 72 किस्म की धान को विलुप्त होने से बचाया
शुरुआत में बीज इकट्ठे करने में परेशानियां आईं। उन्होंने महिला समूह के साथ मिलकर आसपास के गांवों से बीज इकट्ठे किए। शुरुआत में किसानों के पास बीज थे पर वे उन्हें देना नहीं चाह रहे थे। उन्होंने किसानों को देशी बीज का महत्व बताया। जिससे धीरे-धीरे उन्हें उनके काम के बारे में पता चला और वे उनके साथ जुड़ने लगे। उन्होंने अपने खेत में महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया है। वे 3 हज़ार किसानों को अभी तक प्रशिक्षण दे चुकी हैं।

उन्होंने अपने खेत में जैविक खेती अपनाई है, शुरुआत में लोगों को समझाना आसान नहीं था कि वे भी जैविक खेती अपनाएं। लेकिन जब किसानों ने उनके खेत में जैविक ढंग से खेती के परिणाम देखे, तब वहाँ के किसान जैविक खेती को अपनाने लगे।
अभी तक उन्होंने 72 से ज्यादा धान और 32 से ज्यादा मिलेट्स की किस्मों को विलुप्त होने से बचा लिया है, जिनमें कुंद्रा, बाटी, मंडिया, जसरा, जुआना, कलाजीरा, मछकंता, टिकिचूड़ी, हल्दीचूड़ी, तुलसी और लक्टीमाची और जामकोली जैसी दुर्लभ किस्में भी शामिल हैं।
डॉक्टरेट डिग्री से सम्मानित और G20 में शामिल होने का मौका मिला
उनकी वजह से मिलेट्स की इतनी सारी किस्में विलुप्त होने से बच गईं, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी से मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनके प्रयास रुके नहीं हैं। यही वजह है कि उनके काम की सराहना राष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है। उन्हें दिल्ली में हो रहे G20 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था। उन्हें अभी तक बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
उनका कहना है कि देशी फसलों को बढ़ाने के लिए सरकार से उचित दाम (MSP) मिलना ज़रूरी है। तभी ज़्यादा से ज़्यादा किसान इसे लेकर आगे बढ़ पाएंगे। वो चाहती हैं कि मिलेट्स की खेती ज़्यादा से ज़्यादा बढ़े। यह अनाज पर्यावरण के साथ हम इंसानों के लिए भी बहुत लाभदायक है। इसे विलुप्त होने से बचाना हमारा कर्तव्य है।
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नमस्कार! मैं पल्लवी मिश्रा, मैं मंडी भाव से जुड़ी ताज़ा खबरें लिखती हूं। मेरी कोशिश रहती है कि किसान भाइयों को सही और काम की जानकारी मिले। ताकि आप अपनी फसल सही दाम पर बेच सकें। हर दिन के मंडी भाव जानने के लिए KhetiTalks.com से जुड़े रहिए।