सरसों की बुआई का समय आ चूका है किसान सरसों की उपज अच्छी चाहते है तो अच्छी उन्नत रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें तो चलिए सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों के बारे में जानते है।
5 अक्टूबर से करें सरसों की बुवाई
सरसों की बुवाई के लिए 5 अक्टूबर से लेकर 20 अक्टूबर के बीच का समय सबसे उत्तम होता है इन 15 दिनों के बीच में जरूर सरसों की बुआई करना है। इस टाइम की लगी हुई सरसों का उत्पादम 15 क्विंटल प्रति एकड़ तक निकल सकता है। जब सरसों की बुवाई करें तो बुवाई से पहले बेसल डोज में संतुलित मात्रा में खाद का उपयोग करना चाहिए। खाद के लिए फास्फोरस, पोटेशियम, नाइट्रोजन, और सल्फर का उपयोग करना है अगर खाद का संतुलित मात्रा में डोज तैयार करके बेसल डोज में डालते है तो निश्चित तौर पर उत्पादन जबरदस्त होगा। सरसों की बुवाई के लिए सबसे जरुरी काम है उन्नत किस्म का चयन करना है। तो चलिए जानते है कौन सी किस्म लगानी चाहिए।

सरसों की आरएलसी-1 किस्म
सरसों की बुवाई के लिए किसान सरसों की आरएलसी-1 किस्म का चयन कर सकते है ये सरसों की एक उच्च-उपज देने वाली और बीमारी-प्रतिरोधी किस्म है। ये किस्म अपनी उच्च तेल सामग्री, अच्छी गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता के कारण किसानों के बीच काफी प्रसिद्ध है। ये कम लागत मेहनत में अधिक पैदावार देती है इसकी बुवाई 5 अक्टूबर से लेकर 20 अक्टूबर के बीच करना सबसे उत्तम साबित होता है। इसकी खेती के लिए खेत को जोतकर तैयार करना चाहिए और मिट्टी में गोबर की खाद डालना चाहिए। इसे तैयार होने में आमतौर पर 120 से 125 दिन का समय लगता है। एक एकड़ में इसकी खेती करने से लगभग 15 से 20 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।
सरसों की पूसा बोल्ड किस्म
सरसों की पूसा बोल्ड किस्म व्यावसायिक रूप से खेती के लिए बहुत आदर्श होती है इस किस्म में लगभग 40-42% तेल की मात्रा होती है। ये वैरायटी सिंचित और बारानी दोनों क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त होती है। इसकी खासियत ये है की इसकी फलियाँ लम्बी होती है और पकने पर चटखती नही हैं। इसकी खेती के लिए उचित जल धारण क्षमता वाली मिट्टी उत्तम होती है। इसकी बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता हो सकती है। इसके बीजों को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। इसकी खेती में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी और पंक्ति से पंक्ति के बीच 30 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। बुवाई के बाद सरसों की पूसा बोल्ड किस्म की फसल 130-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। ये किस्म प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक पैदावार देती है।

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