बासमती चावल की कीमत बढ़ रही है तो चलिए जानते हैं इसका किसान को कितना फायदा होगा और ग्राहकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा-
भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। इसकी खुशबू, लम्बाई और स्वाद इसे खास बनाते हैं। हाल के वर्षों में बासमती की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं, जिससे किसान और बाजार दोनों प्रभावित हो रहे हैं। जहां किसानों को अच्छी कमाई का मौका मिलता है, वहीं उपभोक्ताओं और निर्यातकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
बासमती की कीमतें बढ़ने के मुख्य कारण
सबसे पहला कारण है अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती की बढ़ती मांग। खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका में भारतीय बासमती की खपत लगातार बढ़ रही है। दूसरा कारण है उत्पादन लागत का बढ़ना। बीज, खाद, मजदूरी और सिंचाई का खर्च पहले की तुलना में अधिक हो चुका है। तीसरा कारण जलवायु परिवर्तन है। अनियमित बारिश और बढ़ते तापमान के कारण उत्पादन प्रभावित होता है। इसके अलावा सरकार की निर्यात नीति और वैश्विक बाजार की मांग भी कीमतों को प्रभावित करती है।
बासमती की कीमतें पर किसान पर प्रभाव
बासमती की बढ़ती कीमतें किसानों के लिए अवसर और चुनौती दोनों हैं। अवसर इसलिए क्योंकि सामान्य धान की तुलना में बासमती की फसल बेचने पर उन्हें दोगुना से ज्यादा दाम मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर जहां साधारण धान की कीमत 20 से 25 रुपये प्रति किलो रहती है, वहीं बासमती 70 से 120 रुपये प्रति किलो तक बिकता है।
चुनौती इसलिए क्योंकि इसकी खेती में ज्यादा पूंजी, देखभाल और पानी की आवश्यकता होती है। फसल अवधि भी लंबी होती है, लगभग 140 से 150 दिन। यदि मौसम बिगड़ जाए या सिंचाई की समस्या हो तो नुकसान भी हो सकता है।

बाजार पर प्रभाव
घरेलू बाजार में कीमत बढ़ने से आम उपभोक्ता बासमती चावल से दूरी बनाने लगते हैं और इसकी खपत उच्च आय वर्ग तक सीमित हो जाती है। निर्यातकों के लिए कीमतें बढ़ना लाभकारी भी है क्योंकि विदेशी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। लेकिन जब कीमत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है तो वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और दूसरे देशों से ऑर्डर जाने लगते हैं। इस स्थिति में निर्यात भी प्रभावित हो सकता है।
कमाई का अनुमान
एक एकड़ जमीन में औसतन 15 से 20 क्विंटल बासमती चावल पैदा होता है। यदि बाजार में कीमत 80 रुपये प्रति किलो है तो किसान को एक एकड़ से 1.2 से 1.6 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। इसमें लगभग 40 से 50 हजार रुपये खर्च आता है। इस तरह शुद्ध लाभ 60 से 80 हजार रुपये तक हो सकता है। वहीं साधारण धान में प्रति एकड़ केवल 25 से 30 हजार रुपये का लाभ मिलता है।
निष्कर्ष
बासमती की बढ़ती कीमतें किसानों के लिए बेहतर आय का साधन साबित हो सकती हैं। लेकिन लागत, जलवायु जोखिम और बाजार की अनिश्चितता बड़ी चुनौतियां हैं। यदि किसान आधुनिक तकनीक, गुणवत्तापूर्ण बीज और सरकार की योजनाओं का लाभ उठाएं तो वे बासमती खेती से अपनी आय कई गुना बढ़ा सकते हैं। साथ ही मंडी के बजाय सीधे निर्यातकों या प्रोसेसिंग कंपनियों से जुड़ना भी किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा।

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