बारिश के दिनों में खेतों में जल भराव होने के कारण पौधों में फंगस लगने के चांसेस बढ़ने लगते है जिससे फसल को काफी नुकसान पहुँचता है फंगस की समस्या से छुटकारा पाने के लिए ये चीज बहुत प्रभावशाली होती है।
गन्ने की फसल में फंगस का खेल खत्म
भरी बारिश के कारण गन्ने की फसल में फंगस का अटैक जल्दी होता है जिससे फसल का बहुत नुकसान होता है इस समस्या से निजात पाने के लिए हम आपको कुछ ऐसी चीजों के बारे में बता रहे है जो फंगस को जल्दी नियंत्रित करती है ये चीजें बाजार में आसानी से उबलब्ध है। गन्ने की फसल में ज्यादा पानी पड़ने से फंगस लगने और जड़े गलने का खतरा बढ़ने लगता है जिससे फसल में कई रोगों का खतरा भी मंडराने लगता है जिससे गन्ने की उपज घटने लगती है और किसानों का बहुत नुकसान होता है इस समस्या को खत्म करने के लिए समय पर उचित रोकथाम के उपाय करना चाहिए जिससे फसल रोगों और फंगस से बच जाती है और उत्पादन में कोई खराब प्रभाव नहीं पड़ता है।

फंगस से बचाव के लिए करें ये छिड़काव
गन्ने की फसल में फंगस के लक्षण दिखाई देते ही तुरंत रोकथाम के अचूक उपाय करना आवश्यक है इसके लिए हम आपको कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, कार्बेंडाजिम जैसे फफूंदनाशकों के बारे में बता रहे है। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड एक कॉपर-आधारित कवकनाशी है जो पौधों की सतह पर एक सुरक्षात्मक परत बनाकर फफूंद के बीजाणुओं को अंकुरित होने से रोकता है साथ ही ये फफूंद और जीवाणु जनित रोगों जैसे रतुआ रोग, जड़ सड़न और पत्ती धब्बे को नियंत्रित करने के लिए बहुत उपयोगी साबित होते है। कार्बेंडाजिम एक प्रणालीगत फफूंदनाशी है ये गन्ने की फसल में फफूंद के विकास को फैलने से रोकता है और गन्ने की पैदावार और चीनी की मात्रा को बढ़ाता है।
ऐसे करें उपयोग
गन्ने की फसल में फंगस कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, कार्बेंडाजिम जैसे फफूंदनाशकों का इस्तेमाल बहुत प्रभावी साबित होता है इनका उपयोग करने के लिए करीब 200 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और ऐसे ही 200 ग्राम कार्बेंडाजिम का घोल बना कर गन्ने की फसल पर अच्छे से छिड़काव करना चाहिए। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए 25 दिनों के अंतराल पर छिड़काव को दोबारा कर सकते है ऐसा करने गन्ने की फसल फफूंद और रोगों से एकदम सुरक्षित रहेगी और लहलहा उठेगी।
नोट: इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी किसानों के निजी अनुभवों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध इंटरनेट स्रोतों पर आधारित है। किसी भी जानकारी का उपयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से परामर्श अवश्य करें।