किसानों को बरसात में पानी की समस्या आ रही तो यह फसल लगाएं और कम पानी अधिक उत्पादन पाएं-
बारिश नहीं हो रही तो यह फसल लगाएं
किसान भाइयों अगर समय पर बारिश नहीं हो रही है, धान लगाने के लिए पानी की उचित व्यवस्था नहीं है तो यहां पर आपको दूसरी फसल की जानकारी दी जा रही है। जिसे जुलाई में लगा सकते हैं। कम पानी में इस फसल से बढ़िया उत्पादन मिलेगा। अच्छी खेती कर पाएंगे।
क्योंकि धान में अधिक पानी की जरूरत पड़ती है, नहीं तो नुकसान हो सकता है तो दूसरी फसल कम पानी में लगाना सही विकल्प होगा। जिसमें खरीफ सीजन में किसान जुलाई में ज्वार की खेती कर सकते हैं। तब चलिए जानते हैं कैसे खेत तैयार करें, कितनी खाद डालें, जिससे बढ़िया फसल हो।
ज्वार की खेती के लिए खेत की तैयारी
ज्वार की खेती के लिए धान की तरह खेत में पानी नहीं भरना पड़ेगा। ज्वार की खेती के लिए जैसे ही हल्की बारिश होती है, मिट्टी में नमी है, तो खेत की जुताई करें। जिसमें गहरी जुताई कर लेंगे तो बेहतर होगा। इसके बाद मिट्टी को समतल बनाएं।
मिट्टी भुरभुरी होगी तो फसल की जड़ अच्छे से विकसित होगी। जिसके लिए दो बार जुताई किसान भाई कर सकते हैं। फसल का अच्छा विकास देखने के लिए ज्वार की फसल को लाइनों में बोना चाहिए। जिससे वायु का आवागमन भी बढ़िया तरीके से होता है। चलिए जानते हैं ज्वार की खेती के लिए बीज का उपचार कैसे करे।
ज्वार के बीज का उपचार और उर्वरक
ज्वार की फसल को कीट, रोग, फंगस आदि से बचाने के लिए बीज का उपचार करना चाहिए। इसके अलावा अच्छा उत्पादन लेने के लिए फसल को पोषण देने के लिए अंतिम जुताई से पहले बढ़िया खाद डालने चाहिए।
जिसमे बीज उपचार करने के लिए किसान भाई कार्बेन्डाजिम का इस्तेमाल कर सकते हैं। जिसमें 1 किलो बीज के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम लेकर बीज का उपचार करें। इससे मिट्टी जनित रोग फसल को नहीं लगते हैं। एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किलो बीज और एक एकड़ में 3 किलो तक भी लगता है।
ज्वार की खेती के लिए उर्वरक की बात की जाए तो अंतिम जुताई से पहले किसान भाई यूरिया, पोटाश और फास्फोरस डाल सकते हैं। जिसमें मात्रा की बात करें तो एक हेक्टेयर में 50 किलो यूरिया, 25 किलो पोटाश, और 40 किलो फास्फोरस ले सकते हैं। इसके अलावा मिट्टी की जांच कर ले और उसके अनुसार खाद की मात्रा को 5-10 किलो कम भी कर सकते हैं, क्योंकि कुछ क्षेत्रों की मिट्टी में कई तरह के पोषक तत्व पहले से मौजूद भी होते हैं, मिट्टी उपजाऊ होती है, इसलिए खाद की आवश्यकता कुछ कम पड़ती है। जिससे किसानों की लागत कम हो जाएगी।