हरड़ की खेती से छापेंगे पैसा, औषधीय गुणों से है भरा, जानें हरड़ का पौधा कैसे लगाएं और हरड़ का रेट क्या है?

हरड़ की खेती में किसानों को मुनाफा है। इससे कई तरह की दवाई बनती है, चलिए जानते है हरड़ का पौधा कैसे लगाएं और इसके सेवन से क्या-क्या फायदे है-

हरड़ का पौधा कैसे लगाएं 

हरड़ के पौधे में इतने औषधीय गुण होते हैं कि हरड़ की खेती करने से किसान मालामाल हो सकते हैं। हरड़ का पौधा अमरुद के पेड़ जैसा दिखता है। हरड़ की खेती करना बहुत आसान है, इसे हर जगह आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान बेहद जरुरी है। सबसे पहले तो हरड़ के पौधे बड़े और लम्बे होते हैं, इनकी औसतन लम्बाई 50-60 फीट तक होती है। आइये आपको बताते हैं हरड़ की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी।

किस काम आती है हरड़

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बाजार में हरड़ कि भारी मांग है। क्योंकि यह कई प्रकार की दवाइयां बनाने में उपयोग की जाती है। ये रहे हरड़ के फायदे-

  • हरड़ का काढ़ा त्वचा संबंधी एलर्जी में फ़ायदेमंद है।
  • हरड़ के फल और हल्दी से तैयार लेप लगाने से फ़ंगल एलर्जी या संक्रमण में आराम मिलता है।
  • हरड़ का पल्प कब्ज़ से राहत दिलाने में भी गुणकारी होता है।
  • हरड़ का नियमित सेवन करने से वज़न कम करने में भी मदद मिलती है।
  • हरड़ स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक होता है जिसके प्रयोग से बाल काले, चमकीले और आकर्षक दिखते हैं।
  • हरड़ का चूर्ण दुखते दांत पर लगाने से भी तकलीफ़ कम होती है।

हरड़ का रेट क्या है?

हरड़ के इन्हीं चमत्कारी गुणों के कारण इसकी कीमत 20000 से 30000 रुपए क्विंटल तक होती है। यानी आप थोड़ी जगह में ही हरड़ की खेती करके अच्छा-खासा पैसा बना सकते हैं। 

छोटी हरड़ और बड़ी हरड़ में क्या अंतर है?

छोटी हरड़ और बड़ी हरड़ में मुख्य अंतर उनके पकने की अवस्था और रंग में होता है। छोटी हरड़ को गुठली बनने से पहले ही तोड़ लिया जाता है, इसे बिना गुठली वाली हरड़ भी कहते हैं, इसका रंग भूरा-काला होता है और स्वाद में यह तीखी होती है। वहीं, बड़ी हरड़ में गुठली होती है और यह पूरी तरह से पकी हुई होती है, रंग में पीली होती है और स्वाद कसैला होता है। छोटी हरड़ पाचन क्रिया को सुधारने और पेट की समस्याओं में फायदेमंद होती है और बड़ी हरड़ का उपयोग कब्ज, खांसी और जुकाम में किया जाता है।   

हरड़ को हिंदी में क्या कहते है?

हरड़ को हिंदी में “हरीतकी” और “हर्रे” भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘Terminalia chebula’ बताया जाता है। यह
आयुर्वेद में इसे अमृत के बराबर माना गया है और इसे विजया, कायस्था, अमृता, प्राणदा जैसे नामों से जानते है। यह पाचन क्रिया को बेहतर बनता है। इससे कब्ज, बवासीर, और अन्य पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है। लेकिन एक्सपर्ट की सलाह में सेवन करें।

बीज को तैयार होने में लगता है 1 माह का समय 

हरड़ के फल से बीज निकालने के बाद आप उसे गोबर की खाद में डालकर 1 महीने के लिए छोड़ दें। 1 महीने बाद ये बीज पूरी तरह से मुलायम हो जाएंगे, उसके बाद आप बीज को खोलें और उसमें से जो भी बीज निकले उसे पॉलिथीन या मिट्टी में डाल दें और उस बीज के बीज को रोप दें। अब उसमें से पौधा निकलने का इंतजार करें, जैसे पौधा निकले उसे आस-पास खेत में कहीं या मेड़ पर लगा दें। हरड़ के पौधे की खासियत है कि इसकी पत्तियां पतझड़ के मौसम में गिरती हैं और आप हरड़ के साथ-साथ दूसरी फसलों की खेती भी कर सकते हैं। 

बड़ी आसानी से बड़ा होता है हरड़ का पेड़ 

हरड़ के पौधे को लगाने के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का स्थान चुनें। हरड़ को पूर्ण सूर्य पसंद है, लेकिन थोड़ी-बहुत छाया भी सहन कर सकता है। हरड़ के पौधे को बढ़ने के लिए बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती, यह कम पानी वाली जगह में भी आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन ध्यान रखें हरड़ की खेती बहुत अधिक गर्म तापमान वाले क्षेत्रों में नहीं की जाती है। 

हरड़ का पौधा कैसे लगाएं
हरड़ की खेती

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ऐसे करें पौधे का रोपण, देगा सालों-साल फल और फायदा 

सबसे पहले जड़ की गेंद के आकार से दोगुने आकार का गड्ढा खोदें, पेड़ को बीच में रखें। उसके बाद मिट्टी भरें और सुनिश्चित करें की पेड़ उसी गहराई पर लगा हो जितना वह कंटेनर में था।  

हरड़ का पेड़ आमतौर पर 2-3 साल में फलना शुरू कर देता है, लेकिन इसको पूरी तरह से विकसित अवस्था को आने में करीब 10 से 15 सालों का समय लगता है। हरड़ के फलों का आकर और उनकी गुणवत्ता भी पेड़ की उम्र के साथ-साथ बढ़ती है और आप एक बार इसका पौधा लगाकर हमेशा इसके फलों को बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं मतलब हरड़ की खेती कभी भी कहते का सौदा नहीं हो सकती है। 

शुरूआती दौर में पौधे की देखभाल होती है जरुरी 

पौधा रोपण के समय, गड्ढों की सघन मिट्टी को कुदाल से खोदकर भुरभुरी बनाएं और उसमें अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद को 3 किलोग्राम प्रति पौधे की दर से मिट्टी में मिलाएं। इसके बाद शुरआत में, जब पौधे युवा होते हैं तब उनकी अच्छी वृद्धि के लिए पहले तीन से चार वर्षों तक हर साल जैविक खाद की छोटी सी खुराक डालते रहें। साथ ही मैन्युअल खपतवार नियंत्रण करें। 3-4 सालों के आपको कुछ खास देखभाल करने की जरुरत नहीं होगी।

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नमस्ते, मैं निकिता सिंह । मैं 3 साल से पत्रकारिता कर रही हूं । मुझे खेती-किसानी के विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी तरो ताजा खबरें बताउंगी। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं । जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप https://khetitalks.com के साथ जुड़े रहिए । धन्यवाद 

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