मिठास के परिपूर्ण इस फल की खेती प्रति हेक्टेयर देगी 8 से 10 लाख रूपए तक कमाई। भारत में सेब की खेती एक प्रमुख फल उत्पादन प्रणाली है, जो विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है। सेब न केवल भारत में बल्कि वैश्विक बाजार में भी एक प्रमुख मांग वाला फल है। इसकी खेती से किसानों को अच्छी आय प्राप्त होती है। आइए सेब की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से जानते हैं।
सेब की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मृदा
सेब एक समशीतोष्ण जलवायु में उगने वाला फल है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए जलवायु और मृदा की आवश्यकता होती है। सेब की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सेब की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी.एच. स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। जलभराव वाले क्षेत्रों में सेब की खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
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सेब की किस्में
भारत में सेब की कई प्रजातियाँ उगाई जाती हैं। प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं।
रेड डिलीशियस – यह उत्तर भारत में सबसे अधिक उगाई जाने वाली किस्म है। इसके फल बड़े और लाल रंग के होते हैं।
गोल्डन डिलीशियस – यह किस्म पीले रंग की होती है और खाने में मीठी और रसदार होती है।
रॉयल गाला – इसमें फल मध्यम आकार के होते हैं और स्वाद में मधुर होते हैं।
अम्बरी – यह किस्म कश्मीर क्षेत्र में उगाई जाती है और इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है।
फूजी – जापानी किस्म जो अब भारत में भी लोकप्रिय हो रही है। इसका फल मीठा और कुरकुरा होता है।
सेब की खेती कैसे करें
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें। जुताई के बाद खेत में गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद मिलाएं। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें ताकि जलभराव न हो। सेब के पौधों की रोपाई नवम्बर से फरवरी के बीच की जाती है। पौधों के बीच 4×4 मीटर से लेकर 6×6 मीटर की दूरी रखें। गड्ढे की गहराई लगभग 1 मीटर होनी चाहिए। गड्ढे में गोबर की खाद, नीमखली और हड्डी की खाद मिलाकर भर दें। शुरुआती वर्षों में हर 15-20 दिनों में सिंचाई करें। गर्मियों में और सूखे समय में सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। ड्रिप इरिगेशन से सेब की खेती में जल की बचत और अच्छी उपज प्राप्त होती है।
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हर साल पौधों की उम्र के अनुसार गोबर की खाद और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग करें। फूल आने से पहले और फल लगने के बाद नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाएं। पौधों की नियमित छंटाई करें ताकि पौधे संतुलित और मजबूत बनें। पुराने और सूखे टहनियों को हटा दें। पेड़ों को इस तरह से आकार दें कि धूप सभी हिस्सों में पहुंचे। सेब के फल आमतौर पर अगस्त से अक्टूबर के बीच पककर तैयार हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई तब करें जब उनका रंग पूरी तरह से विकसित हो जाए और स्वाद में मिठास आ जाए।
इससे सेब 3-4 महीनों तक ताजे रह सकते हैं। इस तकनीक में कम दूरी पर अधिक पौधे लगाए जाते हैं। इससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन कई गुना बढ़ जाता है। इसमें बौनी किस्मों का प्रयोग किया जाता है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से जल की बचत होती है और पौधों को आवश्यकतानुसार नमी मिलती है। मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनी रहती है और खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है। उच्च गुणवत्ता वाले और रोग रहित पौधे टिशू कल्चर से तैयार किए जाते हैं, जो अधिक उत्पादन में सहायक होते हैं।
सेब से कमाई
सेब की खेती से किसानों को औसतन 3 से 5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की आमदनी हो सकती है। हाई डेंसिटी तकनीक अपनाने पर यह आमदनी 8 से 10 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक भी पहुँच सकती है। इसके अलावा सेब को प्रोसेस कर जैम, जूस, विनेगर आदि तैयार कर अतिरिक्त आय भी प्राप्त की जा सकती है।
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