रागी की खेती से सुधरेगी सेहत और बढ़ेगा बैंक बैलेंस, जानिए रागी की किस्में, बुवाई का तरीका और खाद की जानकारी, ताकि मिले अच्छा उत्पादन

आप भी कर सकते हैं सुपरफूड रागी की खेती, चलिए इस लेख में जानते है रागी की खेती कहाँ कैसे करें, इसकी बढ़िया किस्म और खाद की जानकारी-

रागी की खेती

अगर आप भी पौष्टिक अनाज या सुपरफूड खाने के शौकीन हैं, तो आप रागी की खेती कर सकते हैं। जिसे फिंगर मिलेट के नाम से भी जाना जाता है और यह अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाता है। यानी इसकी खेती करने के लिए आपको बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है जो इसकी खेती को और भी आसान बना देता है।
रागी कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। आप रागी का उपयोग रोटी, डोसा, इडली और अन्य खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए कर सकते हैं। रागी की खेती से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी हम आपको बताते हैं-

  • सबसे पुरानी अनाज की फसल है रागी, कई प्रकार मिट्टी में की जा सकती है खेती।
  • रागी की फसल को शुष्क मौसम में उगाया जा सकता है, और यह फसल गंभीर सोखे को भी सहन करने में सक्षम होती है। यह कम समय वाली फसल है क्योंकि यह मात्र 65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और आप बड़ी आसानी से इसे पूरे साल उगा सकते हैं।
  • अब बात करें मिट्टी की, तो रागी को कई किस्मों की मिट्टी में उगाया जा सकता है जैसे कि बढ़िया दोमट से लेकर जैविक तत्वों वाली, कम उपजाऊ पहाड़ी मिट्टी आदि। इसे अच्छे निकास वाली काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
  • मिट्टी का पीएच 4.5-8 रागी की फसल के लिए फायदेमंद होता है।
  • लेकिन पानी को सोखने वाली मिट्टी में आप रागी की खेती नहीं कर सकते है इस बात ध्यान रखें।

रागी की किस्में

नीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार रागी की प्रसिद्ध किस्में और उनकी औसतन पैदावार के बारें में जानें-

  • PES 400: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह जल्दी पकने वाली किस्म है और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|
  • PES 176: यह 102-105 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है| इसके बीज भूरे रंग के होते है और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|
  • KM-65: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है|
  • VL 315: यह 105-115 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह गर्दन तोड़ और भुरड़ रोग को सहन कर सकती है|
  • VL 146: यह 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 9-10 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|
  • VL 149: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह बहुत अनुकूल, अगेती और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक किस्म है|
  • VL 124: यह 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह बीजों और चारे के लिए बढ़िया किस्म है|

रागी की इन प्रमुख किस्मों के अलावा दो किस्में और भी हैं :

  • VL Mandua – 352: यह किस्म महाराष्ट्र और तमिलनाडु को छोड़कर किसी भी राज्य में उगाई जा सकती है। यह फसल 95-100 दिनों का समय लेती है। यानी लगभग तीन महीनों के बाद आप रागी की इस किस्म की कटाई कर सकते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • VR 708 : यह किस्म किसी भी प्रान्त में उगाई जा सकती है क्योंकि यह सूखे को सहनयोग किस्म है।

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किसी भी ऋतु में कर सकते हैं खेती, ऐसे करें जमीन तैयार

रागी एक ऐसी फसल है जिसे आप साल में किसी भी वक्त ऊगा सकते हैं। ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में, बढ़िया निकास वाली मिट्टी में इसको पनीरी लगा कर उगाया जा सकता है। 90% से ज्यादा सेजु (समतल जमीन वाले क्षेत्र) क्षेत्रों में यह खरीफ ऋतु में उगाई जाती है और उत्तरांचल में यह आमतौर पर जून में उगाई जाती है। रागी को 26-29 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

अगर बात करें इसकी खेती करने के लिए जमीन की तैयारी करने की, तो रागी की फसल उगाने के लिए फसली-चक्र बेहद महत्वपूर्ण विधि है और सबसे खास बात कि ये करने से आपको ज्यादा रासायनिक खादे डालने की जरुरत नहीं पड़ती और पैदावार भी ज्यादा होती है।

फसली-चक्र के अलावा रागी की बिजाई अंतर-फसली का भी उपयोग किया जाता है। उत्तरांचल में, रागी और सोयाबीन को भर के आधार पर 90:100% पर मिलाया जाता है और फिर बिजाई के लिए भी प्रयोग किया जाता है। वहीं, उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में रागी+सोयाबीन खरीफ में और जावी रबी में उत्तम और लाहेवन्द फसल कड़ी के रूप में उपयोग किया जाता है। यानि आप किसी और फसल के साथ मिलाकर रागी की खेती कर सकते हैं।

ऐसे करें बीच का उपचार और खाद का प्रयोग

ज्यादा पैदावार के लिए पौधों की उचित मात्रा 1.6-2 लाख है और मुख्य खेत के लिए बीज की मात्रा 4 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए। पौधों के बीच का फासला सामान्य रखें और बिजाई के 20 से 25 दिनों के बाद, पौधों के बीच फासला सामान्य करने के लिए अधिक पनीरी निकालनी जरुरी होती है।

बीज उपचार के लिए आप बीज को 6 घंटों के लिए पानी में भिगोएं, फिर पानी को निकाल दें और बीजों को दो दिन के लिए एक कपडे में अच्छी तरह बांध दें। दो दिन के बाद बीजों को कपड़े से निकाले, इनपर अंकुरण के चिन्ह नजर आएंगे। इनको दो दिन के लिए छांव में सुखाएं। यदि रासायनिक उपचार करना चाहते हैं तो एजोस्पाइरिलम ब्रेसिलेंस (नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरियम) और एस्पर्जिलस एवामोरी (फास्फेट घुलनशील फंगस) 25 के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार करें। इन सभी के अलावा फसल की 2 बार निराई (कचरे की सफाई) करना कतई ना भूलें।

अब आती है खाद उपयोग करने की बारी, खाद में सबसे यूरिया का उपयोग प्रति एकड़ में 52 किलोग्राम करें जिसमें 25 किलोग्राम नाइट्रोजन तत्व मौजूद होंगे। इसके बाद एसएसपी 80 किलो प्रति एकड़ और मुरिएट ऑफ़ पोटॉश 14 किलो प्रति एकड़ उपयोग किया जा सकता है। यह फसल की अच्छी उपज के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

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नमस्ते, मैं निकिता सिंह । मैं 3 साल से पत्रकारिता कर रही हूं । मुझे खेती-किसानी के विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी तरो ताजा खबरें बताउंगी। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं । जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप https://khetitalks.com के साथ जुड़े रहिए । धन्यवाद 

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