इस लेख में अरहर की खेती, अरहर की उन्नत किस्में, हाइब्रिड अरहर की खेती, अरहर की कटाई करने के यंत्र, अरहर की सिंचाई के बारे में पूरी जानकारी दी गई है, जिससे अरहर की खेती सही तरीके से करके अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं |
अरहर की खेती
अरहर की खेती लंबे समय से किसान करते आ रहे हैं। इसमें उन्हें मुनाफा है, अरहर की खेती करने से फसल चक्रीकरण हो जाता है। इससे कमाई दोगुनी हो सकती है। अरहर की कई अच्छी वैरायटी है जिससे अधिक उपज ले जा सकती है। अरहर की खेती करने से मृदा का सुधार होता है। यानी की मिट्टी स्वस्थ होती है। अरहर की खेती में कीटों की समस्या कम आती है। जिससे मुनाफा अधिक होता है, लागत कम होती है और अरहर की खेती अगर किसान करेंगे तो मिट्टी में गहराई तक नाइट्रोजन स्थिरीकरण होगा।
अरहर सेहत के लिए फायदेमंद है। इसमें कई तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं तो चलिए इस लेख में हम जानते हैं कि अरहर की खेती कब की जाती है, इसकी कटाई करने के लिए किन यंत्र का इस्तेमाल करें, सिंचाई कब करें, कौन से पोषक तत्व पाए जाते, और बढ़िया वैरायटी कौन-सी है।
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अरहर की उन्नत किस्में
अरहर की बढ़िया वैरायटी की बात करें तो कई तरह की वैरायटी है। जिनमें समय अलग-अलग लगता है, उत्पादन में कम ज्यादा मिलता है, उनकी खासियत भी अलग होती है। जिसमें बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से भी एक खास किस्म विकसित की गई है। किसान अगर 15% अधिक कमाई करना चाहते हैं तो बिरसा अरहर की तीन प्रभेद की खेती कर सकते हैं। इसमें एक एकड़ में 8 किलो बीज लगाने पर 5 क्विंटल उत्पादन मिलता है।
जिससे एक ही सीजन में 30 से 40000 की कमाई हो जाती है। इसकी बुवाई का समय जून की पहली बरसात के बाद ही सही होता है। मार्च तक में कटाई कर सकते हैं। 210 दिन से 220 दिन तक इसमें समय लगता है। नीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार कुछ और अरहर की किस्म के बारे में जाने-
- पूसा 16– यह भी एक अच्छी किस्म है। इसकी खेती में 120 दिन का समय लग जाता है। इतने में तैयार हो जाती है। इससे किसानो को 15 से 20 क्विंटल एक हेक्टेयर में पैदावार मिलती है। अच्छी उपज लेने के लिए इसकी खेती ढालू खेत में करें। जहाँ बढ़िया जल निकासी हो। यानि कि पानी नहीं रुकना चाहिए।
- प्रभात- किसानो के लिए यह किस्म भी एक अच्छा विकल्प है। लेकिन इससे उत्पादन 10-12 क्विंटल ही एक हेक्टेयर में मिलेगा। इसे पकने में लगने वाले समय की बात करें तो 115 से 135 दिन लगता है। इसकी ऊंचाई 150-170 सें.मी. देखने को मिलती है।
- आईसीपीए-87(प्रगति)- अगर किसानों को बौनी किस्म चाहिए तो यह लगा सकते है। इसमें एक फायदा यह है कि उकठा रोग प्रतिरोधी है। जिससे इससे राहत रहती है। इस किस्म के दाल के दाने बड़े आकार के, हल्के भूरे रंग के रहते है। यह फसल 130 से 140 दिन में तैयार हो जाती है।
- आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05- यह भी बढ़िया किस्म है। इसकी खेती करने पर किसानों को 20 क्विंटल पैदावार मिलती है। यह किस्म कम समय में तैयार होकर अधिक उपज देती है।
- यूपीएएस-120– यह किस्म भी अच्छी है। इसे तैयार होने में 120 से 125 दिन लगता है। यह जल्दी ही पक जाती है। इसे यूपी में विकसित किया गया है।
- अरहर की उन्नत जाति जे. के. एम. -189 या ट्राम्बे जवाहर तुवर-501 भी है। इनका भी चुनाव कर सकते है।
- जंगली अरहर की खेती में भी किसानों को मुनाफा है।
हाइब्रिड अरहर की खेती
हाइब्रिड अरहर की खेती करने में किसानों को अधिक उत्पादन मिलता है। जिससे कमाई अधिक होती है। हाइब्रिड अरहर की किस्मों की बात करें तो यह कम समय में तैयार होकर अधिक उपज देती है। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने अरहर की दो हाइब्रिड किस्में तैयार किया है। जिसमें आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05- यह बढ़िया किस्म है। इससे 20 क्विंटल पैदावार मिलती है। यह किस्में उकठा रोग से खुद को बचा लेती है।
अरहर की खेती कब होती है
अरहर की खेती जून से जुलाई के बीच कर सकते हैं। जिसमें अरहर की बुवाई का सबसे बढ़िया समय विशेषज्ञ बताते हैं कि मध्य जून से लेकर मध्य जुलाई के बीच का होता है। जिससे अच्छा उत्पादन मिलता है। अरहर की अगेती और पछेती दोनों तरह की खेती करते हैं।
अरहर की कटाई कब होती है
अरहर की खेती का समय हमने जान लिया अब कटाई के बात करें तो अगेती अरहर की किसान अगर खेती करते हैं तो जुलाई के मानसून बारिश के बाद लगाई जाती है और दिसंबर तक इसे काट लिया जाता है। अरहर की कुछ ऐसी वैरायटी है जो की 5 से 6 महीने तक रहती हैं, तो कुछ 10 महीने में पककर तैयार होती है तो यह वैरायटी पर निर्भर करता है कि वह कब तैयार होगी। तब उसकी कटाई होगी। जिसमें अगेती किस्म की मुख्यतः कटाई नवंबर में हो जाती है और पछेती किस्म की कटाई मार्च, अप्रैल के समय में किसान करते हैं।
अरहर की कटाई करने के यंत्र
अरहर की कटाई फसल सूखने के बाद किसान करते हैं। जिसमें अगर हाथों से दाने निकालने हैं तो फलियों को काटकर, पीटकर, दाने निकल लेते हैं। यांत्रिक विधि से करना है तो पूलमेन थ्रेसर से कटाई कर सकते हैं। अरहर कटाई के पारंपरिक तरीके की बात करें तो पारंपरिक कृषि यंत्र भी है गड़ासा से भी लोग काटते हैं। लेकिन यह छोटे पैमाने के किसान की खेती के लिए बढ़िया है। बड़े पैमाने पर मशीनों के इस्तेमाल से ही फायदा है।
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अरहर की सिंचाई
अरहर की सिंचाई के बारे में विशेषज्ञों का कहना है की फसल की बुवाई के 30 दिन बाद फूल आ जाने पर किसानों को पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद फसल में जब फली आ जाती है तो 70 दिन बाद दूसरी सिंचाई करते हैं। वहीं अगर बारिश समय-समय पर हो रही है तो ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। अगर बारिश बहुत कम हो रही है तो फसल की बुवाई के बाद 110 दिन में सिंचाई कर सकते हैं। लेकिन अगर बारिश नहीं हो रही है तो ऊपर बताएं नियमों के अनुसार सिंचाई करें।
कितनी दूरी में करें बीज बुवाई
अरहर के बीज की बुवाई अगर किसान 20 सेंटीमीटर की दूरी में करते है तो पैदावार अधिक मिल सकती है। बीज भी कम लगेगा और सही दूरी पर होने से फसल का विकास बढ़िया होगा। धूप, पानी, खाद उन्हें अच्छी मात्रा में मिलेगा।
अरहर के बीज का उपचार
अरहर की खेती में अगर किसान रोग-बीमारी आदि से अपनी फसल को बचाना चाहते हैं तो उन्हें बीज का उपचार करना चाहिए। बीज का उपचार करने के लिए कार्बेंडाजिम दवा 2 ग्राम 1 किलो की दर से इस्तेमाल कर सकते है। जिसमें दावा को पानी में मिलाकर बीजो को मिलाया जाता है और करीब चार घंटे छाया वाली जगह पर रखने के बाद बुवाई करते हैं। इससे बीज में रोग बीमारी कम लगती है। अंकुरण की क्षमता अधिक होती है।
अरहर की दाल के फायदे
अरहर की दाल सेहत के लिए फायदेमंद होती है। इसे दालों का राजा भी कहा जाता है। इसमें प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लोहा, प्रोटीन जैसे कई तरह के पोषक तत्व होते हैं।
तुअर दाल की खेती
तुवर की दाल को ही अरहर की दाल कहा जाता है। तुवर दाल की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी या मटियार दोमट मिट्टी अच्छी होती है। अधिक पैदावार के लिए बुवाई से पहले खेत में गोबर की कंपोस्ट खाद डालें। उन्नत किस्म का चयन करें। बीज उपचार करके कीट से फसल को बचाएं। समय-समय पर गुड़ाई करें। खरपतवार निकले जिससे फसल का विकास अच्छे से होगा। अरहर की खेती के साथ अन्य फसले भी उगा सकते हैं यानी के अंतरवर्तीय फसले जैसे की मक्का, सोयाबीन, मूंगफली ज्वार, आदि।