देशभर में गेहूं की फसल की बुआई हो चुकी है तो कहीं अभी चल रही है ऐसे में आपको सबसे बड़ी टेंशन यह होगी कि गेहूं की फसल को रोगो से कैसे बचाया जाए। जिसके लिए हम आपको आज ऐसे सटीक उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपका गेहूं में रोग नजर नहीं आएंगे। आइए इन उपायों के बारे में बताते हैं।
दीमक
लक्षण:- दीमक एक ऐसा रोग है जो आपकी फसल को जड़ों से नुकसान पहुंचता है। दीमक छोटे, पनखीन और सफेद या फिर हल्के पीले रंग के छोटे-छोटे किट होते हैं। दीमक गेहूं की फसल में झुंड बनाकर जड़ों और बीजों को नुकसान करते हैं। जिसके कारण इससे गेहूं के पौधे कमजोर हो जाते हैं। यह रोग खास करके बलुई और 2 मिनट मिट्टी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलता है।
बचाव:- इससे बचने के उपाय मैं आपको खेत में गोबर की खाद का इस्तेमाल करना होगा और फसलों के अवशेषों को पूरी तरह से नष्ट करना होगा।
सिंचाई करते समय आपको फ्लोर पाइरीफास 20% ईसी की 2.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर में इस्तेमाल करनी है।
गेहूं के खेत में आपके प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल नीम की खली डालकर गेहूं की बुवाई करना है। इससे खरपतवार नहीं आएगा।
यह भी पढ़े: गेहूं से खरपतवार गायब करने का सटीक उपाय, बुवाई के बाद कर ले यह काम खेत में नजर नहीं आएगा खरपतवार
माहू रोग
लक्षण:- महू रोग के लक्षण की बात करें तो माहू छोटे पंख युक्त या पंखहीन हरे कलर के कीट पाए जाते हैं। गेहूं की फसल में यह पत्तियों और बालियों का पूरा रस चूस लेते हैं। इनके फसल से रस चूस लेने के कारण काले कवण का प्रकोप बढ़ता जाता है जिसके कारण पौधे की बढ़ाने की क्षमता रुक जाती है और फसल का उत्पादन भी इससे प्रभावित होता है।
बचाव:- माहू रोग से बचाव के लिए आपको गहरी जुदाई करना होगा और खेतों के चारों और मक्का, बाजारा या ज्वार की बुवाई करनी होगी।
आप गंध पाश लगा करके कीटों की निगरानी कर सकते हैं।
क्युनालफास 25% ईसी की 400 मिली मात्रा को 500 से 1000 लीटर पानी में मिला करके प्रति हेक्टेयर इसका स्प्रे कर देना चाहिए। इससे महू रोग पर नियंत्रण होगा।
भूरा रतुआ रोग
लक्षण:- यह रोग पत्तियों पर नंगी भूरे रंग के धब्बों के रूप में नजर आता है। इन धब्बों को पत्तियों के ऊपरी और पीछे की तरफ पर देखा जाता है। फसल जैसे-जैसे बढ़ती जाती है यह धब्बे तेजी से बढ़ते जाते हैं। यह रोग है जो खास तौर पर यूपी, बिहार, पंजाब और पश्चिम बंगाल में दिखाई देता है।
बचाव:- इस रोग से बचाव का उपाय यह है की आपको एक ही किस्म की बुवाई ज्यादा बड़े क्षेत्र में नहीं करनी चाहिए ऐसा करने पर रोग फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
गेहूं में प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का 0.1% घोल बना करके छिड़काव करना चाहिए ।अगर रोग बढ़ता है ऐसे में 10 से 15 दिन के अंतराल में दूसरा छिड़काव करना चाहिए।
काला रतुआ
यह रोग तनों पर भूरे- कालापन के साथ धब्बे के रूप में आते हैं। इस रोग का प्रभाव तनु से पत्तियां तक फैला नजर आता है। जिसके कारण तने बहुत कमजोर हो जाते हैं। जिसके साथ गेहूं के दाने छोटे और जिलेदार हो जाते हैं। यह रोग दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाकों में बहुत ज्यादा मात्रा में देखने को मिलता है।
बचाव:- नियमित रूप से फसलों की निगरानी बहुत आवश्यक होती है।
गेहूं में प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का 0.1% घोल बना करके छिड़काव करना चाहिए ।अगर रोग बढ़ता है ऐसे में 10 से 15 दिन के अंतराल में दूसरा छिड़काव करना चाहिए।
पीला रतुआ रोग
लक्षण:- इस रोग में पत्तियों पर पीले रंग की धारियां नजर आने लगती है। जिसके कारण अगर आप इन पत्तियों को छूते हैं तो पीले रंग का पाउडर हाथों पर लगता है। यह रोग ठंडा और नाम क्षेत्र में तेजी के साथ फैला हुआ नजर आता है। इसका प्रकोप आपको हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा देखने को मिलता है।
बचाव:- इस रोग के प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए और इनको बड़े क्षेत्र में ना बोए।
गेहूं में प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी का 0.1% घोल बना करके छिड़काव करना चाहिए ।अगर रोग बढ़ता है ऐसे में 10 से 15 दिन के अंतराल में दूसरा छिड़काव करना चाहिए।
यह भी पढ़े: पशु के गोबर करते ही पशुपालक पर ठोक दिया 9000 का जुर्माना, भैंस को भी किया जब्त